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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 378

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 378

**हाईकू**

हुआ तुम्हें पा के सोना सोना,
‘गुरुजी’ कोना-कोना ।।स्थापना।।

अजूबा,
‘हुआ मोती दृग् जल’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।जलं।।

अजूबा,
‘हुई चन्दन धूली’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।चन्दनं।।

अजूबा,
‘हुआ अक्षत पुण्य’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।अक्षतं।।

अजूबा,
‘हुआ सुमन मन’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।पुष्पं।।

अजूबा,
‘हुआ सुर-व्यञ्जन’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।नैवेद्यं।।

अजूबा,
‘हुआ ‘दीया’ सार्थक’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।दीपं।।

अजूबा,
‘हुआ धूप इतर’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।धूपं।।

अजूबा,
‘हुआ ‘जी ना-रियल’
सर-भक्ति क्या डूबा ।।फलं।।

अजूबा,
‘हुआ अनर्घ अर्घ्य’
सर-भक्ति क्या डूबा।।अर्घ्यं।।

**हाईकू**

जिसके गुरु ‘जी’ समाये,
वो ऊँचे लोगों में आये

जयमाला

है गई नहीं
तेरी वो आदत पुरानी
अय ! नूरे आसमानी
अभी भी है वही
तेरी वो आदत पुरानी

काँधे बिठा पार करने की ।
सौदे बिना प्यार करने की ।
लासानी
अय ! सम रस सानी
है गई नहीं
तेरी वो आदत पुरानी
अय ! नूरे आसमानी
अभी भी है वही
तेरी वो आदत पुरानी

माँ भारती अनुसार करने की
जाँ भाँति माँ निसार करने की
धर पानी !
अय ! पातर पाणि
है गई नहीं
तेरी वो आदत पुरानी
अय ! नूरे आसमानी
अभी भी है वही
तेरी वो आदत पुरानी

खुद-सा समझदार करने की
खुदा-सा दिल-दार करने की
वरदानी !
अय ! सरवग ! ध्यानी
है गई नहीं
तेरी वो आदत पुरानी
अय ! नूरे आसमानी
अभी भी है वही
तेरी वो आदत पुरानी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

**हाईकू**

विनय हाथ जोड़ी,
दे दो पाँवन जगह थोड़ी

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