- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 370
हाईकू
पीछी तो है ही ‘ना’ साथ,
थाम मेरा भी लो ‘ना’ हाथ ।।स्थापना।।
तुम तारते,
सुन ये, लिये जल-दृग् पुकारते ।।जलं।।
तुम दृष्टि-माँ निहारते,
ले गंध-सो पुकारते ।।चन्दनं।।
जुड़ तुमसे बाजी मारते,
ले धाँ सो पुकारते ।।अक्षतं।।
तुम अपनों से हारते,
ले पुष्प सो पुकारते ।।पुष्पं।।
तुम पापों को विडारते,
ले चरु सो पुकारते ।।नैवेद्यं।।
तुम जिन्दगी सँवारते,
ले दीप सो पुकारते ।।दीपं।।
तुम शल्य त्रिक् विदारते,
ले धूप सो पुकारते ।।धूपं।।
पार भौ जल उतारते,
ले फल सो पुकारते ।।फलं।।
तुम नौ शिव बिठारते,
ले अर्घ्य सो पुकारते ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
दिल दुखाना न आया,
गुरु माँ की ही प्रतिछाया
जयमाला
बहुत सुने किस्से,
चित् चुराने का हुनर,
दे-बता भी दो गुरुवर,
है सीखा किससे,
बहुत सुने किस्से ।
चाँद तो लगता नहीं,
हो सीखा जिससे ।
दाग-धब्बेदार क्योंकि,
आग ठेकेदार चूँकि,
भान भी लगता नहीं,
हो सीखा जिससे ।
बूझना हो पा रहा ना,
कह भी दो मुझसे ।
बहुत सुने किस्से,
चित् चुराने का हुनर,
दे-बता भी दो गुरुवर,
है सीखा किससे,
बहुत सुने किस्से ।
फूल सो लगता नहीं,
हो सीखा जिससे,
भाग गहने खार क्योंकि
नाग पहने हार चूँकि
चन्दन भी लगता नहीं,
हो सीखा जिससे,
बूझना हो पा रहा ना,
कह भी दो मुझसे ।
बहुत सुने किस्से,
चित् चुराने का हुनर,
दे-बता भी दो गुरुवर,
है सीखा किससे,
बहुत सुने किस्से ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
‘ही’ विचारों में लगे लगाम,
लेते ही गुरु-नाम
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