परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 362=हाईकू=
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।स्थापना।।‘मैं ले’ हाथों में, कम्-कण,
लगा रहा हूँ जयकारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।जलं।।‘मैं लै’ हाथों में, चन्दन आया,
‘कि पा सकूँ सहारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।चन्दनं।।‘मैं लै’ हाथों में, धाँ कण आया,
पाऊँ ‘कि भौ-किनारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।अक्षतं।।‘मैं लै’ हाथों में, सुमन आया,
बहूँ ‘कि साथ धारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।पुष्पं।।‘मैं ले’ हाथों में, व्यञ्जन आया,
साधूँ एक जो न्यारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।नैवेद्यं।।‘मैं लै’ हाथों में, लौं-धन आया,
मेटों, ये अंधियारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।दीपं।।‘मैं लै’ हाथों में, औ-कण आया,
मेंट लूँ कि भौ-कारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।धूपं।।‘मैं लै’ हाथों में, शगुन आया,
पाऊँ ‘कि द्यु-नजारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।फलं।।‘मैं लै’ हाथों में, त्रि-पन आया,
पाऊँ ‘कि शिव-द्वारा,
है ही क्या म्हारा,
मैं लौटा रहा, दिया तुम्हें, तुम्हारा ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
काका बाबू से,
बाबू से,
ताऊ से भी बड़े गुरु जी !।।जयमाला।।
ढ़ल जाती है उमर,
जल लाती है नजर,
खोज-रोज,
कब पाती है मगर,
गुरुदेव चरण रज,
जो मिल गई सहज,
बदनसीब को,
इस गरीब को,
करीब रक्खे रहना यूँ ही ।
कुछ और ज्यादा कहना नहीं ।।
बदनसीब को,
इस गरीब को,ढ़ल जाती है उमर,
जल लाती है नजर,
खोज-रोज,
कब पाती है मगर,
गुरुदेव चरण रज,
जो मिल गई सहज,
बदनसीब को,
इस गरीब को,
माफ करते रहना यूँ ही ।
कुछ और ज्यादा कहना नहीं ।।
बदनसीब को,
इस गरीब को,ढ़ल जाती है उमर,
जल लाती है नजर,
खोज-रोज,
कब पाती है मगर,
गुरुदेव चरण रज,
जो मिल गई सहज,
बदनसीब को,
इस गरीब को,
बस धकाते रहना यूँ ही ।
कुछ और ज्यादा कहना नहीं ।
बदनसीब को,
इस गरीब को,
।। जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू =
गमके खुश्बू सा तुम्हारा जश,
दिश् दश…
…आमीन
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