परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 358*हाईकू*
पलक तुम झलक क्या पाते,
दृग् छलक आते ।।स्थापना।।रंग तेरे कि रँग पाऊँ,
नैन-जल चढ़ाऊँ ।।जलं।।कह ‘कि मन की बात पाऊँ,
घिस-गंध चढ़ाऊँ ।।चन्दनं।।झलक तेरी ‘कि रोज पाऊँ,
शालि-धान चढ़ाऊँ ।।अक्षतं।।तरंग मन ‘कि मार पाऊँ,
चुन-पुष्प चढ़ाऊँ ।।पुष्पं।।आहार यूँ-ही दे रोज पाऊँ,
अरु चरु चढ़ाऊँ ।।नैवेद्यं।।हुबहू तुम सा बन पाऊँ,
घिया-दिया चढ़ाऊँ ।।दीपं।।तेरे अपनों में ‘कि आ पाऊँ,
नूप-धूप चढ़ाऊँ ।।धूपं।।तेरे सपनों में ‘कि आ पाऊँ,
डल-फल चढ़ाऊँ ।।फलं।।गंधोदक यूँ ही रोज पाऊँ,
द्रव-सब चढ़ाऊँ ।।अर्घ्यं।।*हाईकू*
दया दरिया होते,
‘गुरु जी’
धनी-चरिया होते।। जयमाला।।
बेजाँनों से,
बेजुबाँनों से, निभाते रिश्ते हो ।
क्या तुम फरिश्ते हो ।तेरी आँखों में, नजर आता प्यार है ।
तेरी बातों में, नजर आता प्यार है ।।
जा दिल गहरे धसते हो ।
क्या तुम फरिश्ते हो ।।अनजानों को,
बेगानों को, दिखाते रस्ते हो ।
क्या तुम फरिश्ते हो ।।दी शिक्षाओं में, नजर आता प्यार है ।
तेरी दुवाओं में, नजर आता प्यार है ।।
रब लगते हो,
जब हँसते हो ।
क्या तुम फरिश्ते हो ।खींचे कानों में, नजर आता प्यार है ।
दी मुस्कानों में, नजर आता प्यार है ।।
रब लगते हो,
जब हँसते हो ।
क्या तुम फरिश्ते हो ।बेजाँनों से,
बेजुबाँनों से, निभाते रिश्ते हो ।
अनजानों को,
बेगानों को, दिखाते रस्ते हो ।
क्या तुम फरिश्ते हो ।।।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
दे दिया करो
‘जल्द ही गन्धोदक’
ए मेरे प्रभो !
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