- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 357
=हाईकू=
करता प्रेम आपसे,
मैं दीवाना मीरा के जैसे ।।स्थापना।।
आपकी मिल पीछी जाये,
ले भाव ये जल लाये ।।जलं।।
पुरानी मिल पीछी जाये,
ले भाव ये गंध लाये ।।चन्दनं।।
आप से मिल पीछी जाये,
ले भाव ये सुधाँ लाये ।।अक्षतं।।
पंख ही मिल पीछी जाये,
ले भाव ये पुष्प लाये ।।पुष्पं।।
बनाने मिल पीछी जाये,
ले भाव ये चरु लाये ।।नैवेद्यं।।
छूने ही मिल पीछी जाये,
ले भाव ये दीप लाये ।।दीपं।।
देने ही मिल पीछी जाये,
ले भाव ये धूप लाये ।।धूपं।।
सहारा मिल पीछी जाये,
ले भाव ये फल लाये ।।फलं।।
आशीष मिल पीछी जाये,
ले भाव ये अर्घ लाये ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू =
बातें ही नहीं होतीं,
गुरु की बातें झकझोरतीं
।। जयमाला।।
तुम मुझे जाँ से ज्यादा प्यारे हो
छलिया शख्स हर
इक अकेले तुम्हीं सहारे हो ।
दुनिया है भँवर
इक अकेले तुम्हीं किनारे हो ।
तुम मुझे जाँ से ज्यादा प्यारे हो ।
मदद करने में और की
तुमनें कब गौर की, अपनी तकलीफ
है तुम्हारी तारीफ
पंक बीच पंकज से न्यारे हो ।
तुम मुझे जाँ से ज्यादा प्यारे हो
छलिया शख्स हर
इक अकेले तुम्हीं सहारे हो ।
दुनिया है भँवर
इक अकेले तुम्हीं किनारे हो ।
तुम मुझे जाँ से ज्यादा प्यारे हो ।
ये जमीं, ये आसमाँ
हैं तुम्हारे ही भरोसे
तुम्हारी आँखों से
बहती औरों की तकलीफ
है तुम्हारी तारीफ
अहिंसा गगन न्यारे इक सितारे हो ।
तुम मुझे जाँ से ज्यादा प्यारे हो ।
छलिया शख्स हर
इक अकेले तुम्हीं सहारे हो ।
दुनिया है भँवर
इक अकेले तुम्हीं किनारे हो ।
तुम मुझे जाँ से ज्यादा प्यारे हो ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
दे दिया करो, रोज ही,
चर्ण-रज यूँ ही गुरु जी
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