परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 355=हाईकू=
जो आँचल न छोड़ें,
‘गुरु’,
उनका दिल न तोड़ें ।।स्थापना।।आसमाँ छुये पतंग,
लाये भाव ये नीर संग ।।जलं।।मने त्यौहार रंग,
लाये भाव ये चन्दन संग ।।चन्दनं।।भाये पद निःसंग,
लाये भाव ये अक्षत संग ।।अक्षतं।।उठे ही न ‘जी’ तरंग,
लाये भाव ये पुष्प संग ।।पुष्पं।।क्षुध् अब करे न तंग,
लाये भाव ये चरु संग ।।नैवेद्यं।।न आऊँ बहिर् ‘भी’ गंग,
लाये भाव ये दीप संग ।।दीपं।।लूँ जीत कर्मों से जंग,
लाये भाव से धूप संग ।।धूपं।।उड़ता जाये विहंग,
लाये भाव ये फल संग ।।फलं।।पाऊँ द्यु-शिव सुरंग,
लाये भाव ये अर्घ्य संग ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
सामने गुरु जी के,
प्रश्न पड़ने लगते फीके।। जयमाला।।
कण-धूल-चरण
‘तिरे’
अमूल-वचन
पाने के लिये,
क्या करना होगा ‘दे-बता’पाने के लिये,
‘तुझे’
रिझाने के लिये
क्या करना होगा देवता !आहार घर-पर
‘तेरा’
हाथ सर-पर
पाने के लिये
क्या करना होगा ‘देवता’ !
कण-धूल-चरण
‘तिरे’
अमूल-वचन
पाने के लिये,
क्या करना होगा ‘दे-बता’मुस्कान-अखर
‘तेरी’
एक नजर
पाने के लिये
क्या करना होगा ‘देवता’ !
कण-धूल-चरण
‘तिरे’
अमूल-वचन
पाने के लिये,
क्या करना होगा ‘दे-बता’मोर पिछिका-पंख
‘तोर’
संग-सत्संग
पाने के लिये
क्या करना होगा ‘देवता’ !
कण-धूल-चरण
‘तिरे’
अमूल-वचन
पाने के लिये,
क्या करना होगा ‘दे-बता’
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू =
साथ जो गुरु-वर,
तो करनी क्यों कर फिकर
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