- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 353
==हाईकू==
हुआ अरसा पड़गाये तुम्हें,
न भुलाओ हमें ।।स्थापना।।
दो धरा सर-भार धरा,
मैं जल ले द्वार खड़ा ।।जलं।।
सुना, सुनते दुखड़ा,
मैं चन्दन ले द्वार खड़ा ।।चन्दनं।।
पतंग दिया आसमाँ चढ़ा,
मैं धाँ ले द्वार खड़ा ।।अक्षतं।।
बाँस अब चित् रहा चुरा,
मैं पुष्प ले द्वार खड़ा ।।पुष्पं।।
नजूमियों में तोता निरा,
मैं चरु ले द्वार खड़ा ।।नैवेद्यं।।
दिया माटी को बना घड़ा,
मैं दिया ले द्वार खड़ा ।।दीपं।।
हंस दूसरी कक्षा पढ़ा,
मैं धूप ले द्वार खड़ा ।।धूपं।।
टूट फिर के पानी जुड़ा,
मैं फल ले द्वार खड़ा ।।फलं।।
मेंढक भाग स्वर्ग जड़ा,
मैं अर्घ ले द्वार खड़ा ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू ==
मानिन्द तरु, पूरें और आरजू,
‘माँ’ और ‘गुरु’
।।जयमाला।।
डूबी-डूबी
मेरी पनडुबी
आ तारण-हारे,
दो लगा किनारे
है बीच मझधार
और टूट,
गई छूट, ऊपर से पतवार
इक शरण सहारे ।
दो लगा किनारे।
मेरी पनडुबी
डूबी-डूबी
मेरी पनडुबी
आ तारण-हारे,
दो लगा किनारे
है बीच मझधार ।
छोड़ता तीर,
आया नीर,वो भी मूसलाधार
और टूट,
गई छूट, ऊपर से पतवार
इक शरण सहारे ।
दो लगा किनारे ।
मेरी पनडुवी
डूबी-डूबी
मेरी पनडुबी
आ तारण-हारे,
दो लगा किनारे
है बीच मझधार ।
तरु पलटाती,
बेंत नवाती, आँधी करें प्रहार
और टूट,
गई छूट, ऊपर से पतवार
इक शरण सहारे ।
दो लगा किनारे।
मेरी पनडुबी
डूबी-डूबी
मेरी पनडुबी
आ तारण-हारे,
दो लगा किनारे
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू==
उठा गुरु जी ने नजर ली,
मेरी लॉटरी खुली
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