परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 343हाईकू
निहारो,
थारे बिना,
गुरु ‘जी’ सूना-सूना
पधारो ! ।।स्थापना।।भेंटूँ उदक-सी जी, पाने ठण्डक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन-सी ही, पाने दमक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत-सी ही, पाने खनक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।अक्षतं।।भेंटूँ सुमन-सी जी, पाने बनक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।पुष्पं।।भेंटूँ व्यञ्जन-सी ही, पाने महक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीपक-सी ही, पाने चमक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।दीपं।।भेंटूँ सुगन्ध-सी ही, पाने तनक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।धूपं।।भेंटूँ ‘श्री’ फल सी ही, पाने बेशक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।फलं।।भेंटूँ अरघ सी ही, पाने झलक,
ए ! ‘जित-अख’ ।।अर्घ्यं।।हाईकू
फैलाना और हित झोली,
जानते सिर्फ गुरु जीजयमाला
न दूर करना,
चरणों से,
आप नजरों से, न दूर करना,
रह ना पाऊँगा वरनाखुल न पा रही पाँखें ।
अभी मेरी, खुल न पा रही आँखें
अभी तेरी, मुझको जितनी जरूरत
है उतनी जरूरत और किसकोओ ! माँ चिड़िया,
अय ! दिले-दरिया,
न दूर करना,
चरणों से,
आप नजरों से, न दूर करना,
रह ना पाऊँगा वरनाहाय ! जंगल राज माया
जाल डग डग पे बिछाया ।
ओ ! ज़िन्दगी मेरी
मेरा कर भी तो यकीं
अभी तेरी, मुझको जितनी जरूरत
है उतनी जरूरत और किसकोओ ! माँ हिरनिया,
अय ! दिले-दरिया,
न दूर करना,
चरणों से,
आप नजरों से, न दूर करना,
रह ना पाऊँगा वरना।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
बिगड़े आगे भी काम न,
और ना, यही कामना ।
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