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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 341

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 341

    हाईकू

    उनमें से श्री गुरु,
    जिनके कामों से आती खुश्बू ।।स्थापना।।

    पाने अमनो चैन,
    लाये ये जल ले भींगे नैन ।।जलं।।

    जागने दिन रैन,
    लाये चन्दन ले भींगे नैन ।।चन्दनं।।

    पाने द्यु-काम धेन,
    लाये अक्षत ले भींगे नैन ।।अक्षतं।।

    जेय दृग्-अहि श्येन !
    लाये ये पुष्प ले भींगे नैन ।।पुष्पं।।

    क्षुधा तरेरे-नैन,
    लाये नैवेद्य ले भींगे नैन ।।नैवेद्यं।।

    पाने सुर’भी’ वैन,
    लाये ये दीप ले भींगे नैन ।।दीपं।।

    जीतने कर्म-सैन,
    लाये ये धूप ले भींगे नैन ।।धूपं।।

    पाने पूनम रैन,
    लाये ये फल ले भींगे नैन ।।फलं।।

    बनने साँचे जैन,
    लाये ये अर्घ ले भींगे नैन ।।अर्घ्यं।।

    हाईकू

    मिलें हमेशा ही श्री गुरु,
    पोंछते औरों के आँसू

    जयमाला

    घर अपने गुरु को पड़गाया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।

    पा गये चाँद तारे वो ।
    आ गये उस किनारे वो ।
    दिखा जाता हिरन दाँया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।
    घर अपने गुरु को पड़गाया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।

    पंक्ति हंसों की वो पाये ।
    खुदा के ख्यालों में छाये ।
    सुनहरा कल लहर खाया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।
    घर अपने गुरु को पड़गाया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।

    दीप लौं, खो गई रजनी ।
    सीप वो हो गये बजनी ।
    जुदा ‘सा ही’ सुकून पाया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।
    घर अपने गुरु को पड़गाया ।
    हाथ उनके न लगा क्या-क्या ।
    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    हाईकू

    मैं आँखें खोलँ,
    और पाऊँ तुम्हें,
    दो वरदाँ हमें

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