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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 333

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 333

    ==हाईकू==
    तेरी पारखी नजर,
    छू दे बना हीरा, ‘पत्थर’।।स्थापना।।

    लाया दृग् जल इसीलिये,
    तेरे दो पल चाहिये ।।जलं।।

    लाया संदल इसीलिये
    तेरे दो पल चाहिये ।।चन्दनं।।

    आया ले धान, इसीलिये,
    मुस्कान, तेरी चाहिये ।।अक्षतं।।

    लाया सुमन इसीलिये,
    शरण तेरी चाहिये ।।पुष्पं।।

    आया ले चरु इसीलिये,
    हुनर तरु चाहिये ।।नैवेद्यं।।

    लाया संजोत इसीलिये,
    तेरी द्यु-पोत चाहिये ।।दीपं।।

    लाया अगर इसीलिये,
    नज़र तेरी चाहिये ।।धूपं।।

    आया ले फल इसलिये,
    तेरे दो पल चाहिये ।।फलं।।

    तेरी शरण में हूँ,
    करो करना जो मैं क्या कहूँ ।।अर्घ्यं।।

    ==हाईकू==
    ‘सुनते’ कान लगा के,
    ‘गुरु जी न कभी’ सुनाते

    ।। जयमाला।।

    देखते ही तुम्हें,
    कुछ कुछ होता है हमें,
    थम सी जाती दिल धड़कन पल-पलक,
    खुली की खुली रह जाती कोंपल-पलक,
    आता कुछ भी न समझ में,
    कुछ कुछ होता है हमें ।

    तुम चाँद से प्यारे जो हो ।
    निश अमावस ध्रुव तारे जो हो ।।
    मन ही मन अपने,
    बस देखते ही बने,
    देखते ही तुम्हें,
    कुछ कुछ होता है हमें ।

    झुकी झुकी सी ये नजर तुम्हारी ।
    कुछ हटके जो है मुस्कान प्यारी ।
    खुशी के आँसू आते नयन में,
    देखते ही तुम्हें,
    कुछ कुछ होता है हमें ।

    मिसरी सा मीठा जो बोलते हो ।
    हट इक सुकून फिज़ा में घोलते हो ।।
    होता सा अपना,
    लगता है सपना ।।
    देखते ही तुम्हें,
    कुछ कुछ होता है हमें ।

    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    ==हाईकू==
    ‘जिसमें रजा तुम्हारी,
    है उसमें रजा हमारी’

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