परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 331==हाईकू==
थाम अंगुली,
देते थमा गुरु जी
ठाँव अगली ।।स्थापना।।कहर ढ़ाते, जन्म मरण,
लाज राखो भगवन् ।।जलं।।भौ-ताप हो, न अब सहन,
लाज राखो भगवन् ।।चन्दनं।।छूटे न पिण्ड आवागमन,
लाज राखो भगवन् ।।अक्षतं।।तृष्णा फिर के उठाती फन,
लाज राखो भगवन् ।।पुष्पं।।देखे तरेर-दृग् क्षुध्-वेदन,
लाज राखो भगवन् ।।नैवेद्यं।।गणना माटी माधव-मन,
लाज राखो भगवन् ।।दीपं।।छिड़ा अनादि कर्मों से रण,
लाज राखो भगवन् ।।धूपं।।मोक्ष फल जा लगा गगन,
लाज राखो भगवन् ।।फलं।।पद अर्घ्य टिके नयन,
लाज राखो भगवन् ।।अर्घ्यं।।==हाईकू==
आ थोड़ा ‘घुला-मिला करो,
‘गुरु जी से’
खुला करो।। जयमाला।।
लिया किसी ने चित् मेरा चुरा ।
अभी अभी मुस्कुरा ।
है जिसका मुखड़ा,
चाँद का टुकड़ा ।
पा झलक जिसकी,
पल-पलक न ठहरे दुखड़ा ।।छव जिसकी बिलकुल भगवन् से मिलती ।
हटके सुखी एक दर्शन से मिलती ।
आओ आके देखो जरा ।
लिया किसी ने चित् मेरा चुरा ।
अभी अभी मुस्कुरा ।।
अपनी इक नजर उठा ।
लिया किसी ने चित् मेरा चुरा ।
अभी अभी मुस्कुरा ।।हैं जिसके बोल, मिसरी के घोल ।
गुजारे साथ में पल वे अनमोल ।।
सबसे अलग है वो सबसे जुदा ।
लिया किसी ने चित् मेरा चुरा ।
अभी अभी मुस्कुरा ।।
है जिसका मुखड़ा,
चाँद का टुकड़ा ।
पा झलक जिसकी,
पल-पलक न ठहरे दुखड़ा ।।।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==हाईकू ==
रहता जब लग रस्ता,
श्री गुरु निभायें रिश्ता
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