परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 330*हाईकू*
आपके सिवा मेरा कोई ना,
गुरु जी, लो अपना ।।स्थापना।।रहे छाहरी सा साथ निन्दक,
मैं भेंटूँ उदक ।।जलं।।देख निन्दक न सिकोडूँ नाकँ-मुँ
मैं गंध भेंटूँ ।।चन्दनं।।निन्दक गीड़ दिखाता रहे सदा,
मैं भेंटूँ सुधाँ ।।अक्षतं।।भेंटूँ गुल,
‘कि बाँधूँ सदा निन्दक प्रशंसा पुल ।।पुष्पं।।किसी निन्दक से मिला दो प्रभु,
मैं चढ़ाऊँ चरु।।नैवेद्यं।।निन्दक रहे आ के मेरे करीब,
मैं भेंटूँ दीव ।।दीपं।।निन्दक कभी पाये न रूठ,
भेंटूँ मैं घट-धूप ।।धूपं।।निन्दक मुझे न छोड़े अकेला,
मैं चढ़ाऊँ भेला ।।फलं।।निन्दक-
मैं, हों एक जान जिस्म दो,
‘कि कुछ करो ।।अर्घ्यं।।हाईकू
तुमने लाज जो राखी म्हारी,
जाऊं मैं बारी बारी।।जयमाला।।
तुम जो मिल गये,
‘के हम संभल गये ।।
कलदार थे खोटे, ‘के फिर भी चल गये ।
तुम जो मिल गये,
‘के हम संभल गये ।।थे बढ़ते दीवा, ‘के फिर से जल गये ।
तुम जो मिल गये,
‘के हम संभल गये ।।थे मुदने को गुल, ‘के खुल के खिल गये ।
तुम जो मिल गये,
‘कि हम संभल गये॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
*हाईकू*
गुरुदेवा,
न मुॅंदीं ही,
रहो आँखों में खुलीं भी
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