- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 320
हाईकू
चूनर चाँद-तारे जड़े,
गुरु जी हम भी खड़े ।।स्थापना।।
आ जाया करो यहीं रोज ही,
भेंटूँ जल गुरुजी ।।जलं।।
चन्दन चचूँ,
आ जाना कल पुन:, चरण पर्शूं ।।चन्दनं।।
दृग् गीले, ‘रखूँ’
पीले चावल, आना ‘कि पुन: कल ।।अक्षतं।।
भेंटूँ पयोज,
आ जाया करो ना, यूँ ही रोज-रोज ।।पुष्पं।।
भेंटूँ नेवज,
पाऊँ कल पुन: ‘कि चरण रज ।।नैवेद्यं।।
दीप चढ़ाऊँ,
कल पुन: बुलाने ‘कि मना पाऊँ ।।दीपं।।
भेंटूँ धूप,
पा सकूँ अवसर ये पुन: अनूप ।।धूपं।।
भेंटूँ फल,
आ जाना आज के जैसे ही पुन: कल ।।फलं।।
आ जाया करो ऐसे ही रोजाना,
मैं भी पराया ना ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
ओ ! म्हारे चाँद-पूरे,
हैं बिन थारे हम अधूरे
जयमाला
दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
पास रख लीजिये, हरिक सितम सहेंगे ।
दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
‘जि गुरु जी, दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
छोड़ना इस जहान को, जि मन्जूर हमें ।
ओढ़ना आसमान को, जि मंजूर हमें ।
दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
‘जि गुरु जी, दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
जीमना पाणि पात्र में, जि मन्जूर हमें ।
सोवना दिन ना रात्रि में, जि मंजूर हमें ।
दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
‘जि गुरु जी, दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
चलना पाँव-पाँव से, जि मन्जूर हमें ।
बचना तनाव-ताँव से, जि मंजूर हमें ।
दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
‘जि गुरु जी, दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
जुड़ना, जोड़ना भी ना, जि मन्जूर हमें ।
सच क्या ? बोलना ही न, जि मंजूर हमें ।
दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
‘जि गुरु जी, दूर आपसे अब न हम रह सकेंगे ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
क्या चाहूँ ?
तो मैं चाहूँ
कलि-गोपाल
मति-मराल
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