परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 306
*हाईकू*
अब न रहा नया,
हुआ पुराना
दो बरसा दया ।।स्थापना।।
भेंटूँ उदक,
द्वारे अपने पाऊँ कि गन्धोदक ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन,
स्वप्न छोड़ भी करूँ कभी दर्शन ।।चन्दनं।।
भेंटूँ धाँ-शाली,
यूँ ही ‘कि रोज मने मेरी दीवाली ।।अक्षतं।।
भेंटूँ कुसुम,
पुकारो ‘कि मुझे भी नाम से तुम ।।पुष्पं।।
भेंटूँ नेवज,
कि पाऊँ यूँ ही रोज चरण-रज ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ दीप,
जो चढ़े तुम्हें मोती वो मैं बनूँ सीप ।।दीपं।।
भेंटूँ सुगंध,
जोड़ने अटूट ‘माँ-वत्स’ संबंध ।।धूपं।।
भेंटूँ फल,
कि जपूँ तुम्हारा नाम मै पल-पल |। फलं।।
भेंटूँ अरघ,
पखारूँ रोज कि यूँही आप पग ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
प्रणाम,
शाम-शाम ,जो लगा दिया हाथ मुकाम
।।जयमाला।।
यहीं चरणों के आस-पास
बना रहने दो ये दास
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
फिर क्या ? फिर तो, छावेगा सावन ।
खुशियों से भर जावेगा दामन ।।
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
बना रहने दो ये दास
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
फिर क्या ? फिर तो, बदलेगी दुनिया ।
छूने कद मेरा मचलेगी दुनिया ।।
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
बना रहने दो ये दास
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
फिर क्या ? फिर तो, खोवेगा मातम ।
सम परमातम होवेगा आतम ।।
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
बना रहने दो ये दास
अभिलाष, सिर्फिक यही अरदास
यहीं चरणों के आस-पास
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
यही प्रार्थना गुरुदेव
रहना साथ सदैव
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