परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 304
-हाईकू-
छोटे बाबा गो-शाला
‘दो ला’ जीवन में उजियाला ।।स्थापना।।
उदक नाम को,
पर स्वीकार लो, गुरु कामगो ।।जलं।।
चन्दन बस,
पै स्वीकार लो, आया सुनके जश ।।चन्दनं।।
धाँ थोड़ा,
पै स्वी-कार लो, भक्ति तुम दुशाला ओड़ा । ।।अक्षतं।।
पुष्प ऐसे,
पै स्वीकार लो, आपके ही हम जैसे ।।पुष्पं।।
चरु जरा सा,
पै स्वीकार लो, और न अभिलाषा ।।नैवेद्यं।।
दीप माटी,
पै स्वीकार लो, लौं थारी हमारी थाती ।।दीपं।।
धूप ये बच्ची,
पै स्वीकार लो, लागी लौं तुमसे सच्ची ।।धूपं।।
फल छोटा,
पै स्वीकार लो, उतार आया मुखौटा ।।फलं।।
अर्घ्य केवल,
पै स्वीकार लो, आया नैन सजल ।।अर्घ्यं।।
-हाईकू-
प्रणाम,
तुम्हें खूब आता,
बनाना-बिगड़े काम
।।जयमाला।।
बेजुबानों के
अय ! रक्षक !
संरक्षक
हिन्द-जुवानों के
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बेजुबाँ जिन्दगी, बूँद-बूँद रोती-सी ।
जुवाँ-हिन्द अपना वजूद खोती सी ।।
अय ! रक्षक !
संरक्षक !
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बाहर भारत से, बेकार हिन्द जुबाँ ।
कह दिया भारत ने, भू-भार बेजुबाँ ।।
अय ! रक्षक!
संरक्षक !
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें।
बेजुबानों के
अय ! रक्षक !
संरक्षक
हिन्द-जुवानों के
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बेजुबाँ जिन्दगी, बूँद-बूँद रोती-सी ।
जुवाँ-हिन्द अपना वजूद खोती सी ।।
थे-अपने, आये परायों में बेजुबां ।
घर-अपने, आये परायों में हिन्द जुबाँ ।
अय ! रक्षक !
संरक्षक !
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बेजुबानों के
अय ! रक्षक !
संरक्षक
हिन्द-जुवानों के
जाँ, मुसीबत में, आ, लो बचा हमें ।
बेजुबाँ जिन्दगी, बूँद-बूँद रोती-सी ।
जुवाँ-हिन्द अपना वजूद खोती सी ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
-हाईकू-
रख सिर पे, दो हाथ
थारी-सारी मानेंगे बात
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