परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 288
==हाईकू==
घना अंधेरा
न और कोई मेरा
सहारा तेरा ।।स्थापना।।
सच्चे मन से आये,
ओ ! अपना लो
उदक लाये ।।जलं।।
गद-गद गिर् आये,
ओ ! अपना लो
चन्दन लाये ।।चन्दनं।।
भींजे नयना आये,
ओ ! अपना लो
तण्डुल लाये ।।अक्षतं।।
भर श्रद्धा से आये.
ओ ! अपना लो
कुसुम लाये ।।पुष्पं।।
भक्ति से भर आये,
ओ ! अपना लो
व्यंजन लाये ।।नैवेद्यं।।
झुक झूमते आये
ओ ! अपना लो
दीपक लाये ।।दीपं।।
लिये उम्मीदें आये,
ओ ! अपना लो
सुगंध लाये ।।धूपं।।
निजी जान के आये,
ओ ! अपना लो
श्रीफल लाये ।।फलं।।
बड़ी दूर से आये,
ओ ! अपना लो
अरघ लाये ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
है आप कुछ अनोखे,
चाहते भी न देना धोखे
।। जयमाला।।
‘री पवन ! सुनते हैं, तू दौड़-दौड़ जाती है ।
ए ! बता
ले जायेगी क्या ?
नाम गुरुदेव के इक पाती है ।।
तू दौड़-दौड़ जाती है,
तू दूर-दूर जाती है ।
क्या लिक्खा है, जो पूछती इस पाती में ।
तो आ, पास आ, पढ़ के सुनाता हूॅं मैं तुम्हें ।।
बहुत आती है याद तुम्हारी ।
बहुत आती है याद तुम्हारी ।।
दृग् भिंजा जाती है ।
मृग सा भ्रमाती है, याद तुम्हारी ।।
‘री पवन ! सुनते हैं, तू दौड़-दौड़ जाती है ।
ए ! बता
ले जायेगी क्या ?
नाम गुरुदेव के इक पाती है ।।
तू दौड़-दौड़ जाती है,
तू दूर-दूर जाती है ।
क्या लिक्खा है, जो पूछती इस पाती में ।
तो आ, पास आ, पढ़ के सुनाता हूॅं मैं तुम्हें ।।
बहुत आती है याद तुम्हारी ।
बहुत आती है याद तुम्हारी ।
सुध-बुध गवाती है ।
अद्भुत सी थाती है, याद तुम्हारी ।।
बहुत आती है याद तुम्हारी,
बहुत आती है याद तुम्हारी
‘री पवन ! सुनते हैं, तू दौड़-दौड़ जाती है ।
ए ! बता
ले जायेगी क्या ?
नाम गुरुदेव के इक पाती है ।।
तू दौड़-दौड़ जाती है,
तू दूर-दूर जाती है ।
क्या लिक्खा है, जो पूछती इस पाती में ।
तो आ, पास आ, पढ़ के सुनाता हूॅं मैं तुम्हें ।।
छाया सी साथी है ।
मँगाती ‘पाती’ है, याद तुम्हारी ।।
बहुत आती है याद तुम्हारी ।
बहुत आती है याद तुम्हारी ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==हाईकू==
‘अन्तिम यही प्रार्थना
खींच लेना
दिया हाथ ना’
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