परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 272
*हाईकू*
पाँव-छाँव में
जगह दीजे,
‘गुरु जी’ दया कीजे ।।स्थापना ।।
तुमने रख ली जो लाज हमार,
भेंटूँ दृग् धार ।।जलं।।
तुमने रक्खी जो लाज मोर,
भेंटूँ गंध बेजोड़ ।।चन्दनं।।
ओ ! रख ली जो तुमने लाज मेरी,
भेंटूँ धाँ ढेरी ।।अक्षतं।।
तुमने रक्खी जो लाज म्हारी,
भेंटूँ पुष्प पिटारी ।।पुष्पं।।
रक्खी जो लाज मेरी तुमने,
चरु भेंटी हमने ।।नैवेद्यं।।
तुमने रख ली जो लाज हमारी,
भेंटूँ दीपाली ।।दीपं।।
तुमने लाज जो हमारी रख ली,
भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।
लाज म्हारी जो राखी तुमने,
भेंटें भेले हमनें ।।फलं।।
लाज हमारी तुमने ली जो रख,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
‘दे-बता’
छुपी क्या व्यथा ?
पाऊँ आप-सा
आप पता’
।। जयमाला।।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
गुरु जी तुम,
हाँ ! हाँ ! हाँ ! तुम
बहुत खूबसूरत हो ।।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
छूते ही तिरे चरण ।
हो जाती छू उलझन ।।
सुख क्षण मिरे अहो !
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
गुरु जी तुम,
हाँ ! हाँ ! हाँ ! तुम
बहुत खूबसूरत हो ।।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
छूते ही तव स्मरण ।
हो जाती छू अड़चन ।।
सु-मरण ! मिरे अहो ।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
गुरु जी तुम,
हाँ ! हाँ ! हाँ ! तुम
बहुत खूबसूरत हो ।।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
छूते ही तुम ऽऽचरण ।
हो जाती छू भटकन ।।
शिव-धन ! मेरे अहो ।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
गुरु जी तुम,
हाँ ! हाँ ! हाँ ! तुम
बहुत खूबसूरत हो ।।
मंगल मूरत हो ।
शुभ मुहूरत हो ।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
हो गईं ढेर सारी,
‘भूलें’
कीजिये ढेर हमारी ।।
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