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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 269

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 269

*हाईकू*
माटी मैं,
गुरु जी !
जोड़ हाथ खड़ा, बनने घड़ा ।।स्थापना ।।

भेंटते नीर,
कृपाल-वैद्य-बाल !
मेंट दें पीर ।।जलं।।

भेंटते गन्ध,
दयाल प्रति पाल !
मेंट दें द्वन्द्व ।।चन्दनं।।

भेंटते सुधाँ,
कलि-काल-गोपाल !
मेंट दें कुध्याँ ।।अक्षतं।।

भेंटते पुष्प,
निहाल-भाग्य-भाल !
मेंट दीजे कुप् ।।पुष्पं।।

भेंटते नेविद्,
भाल-उर-विशाल |
मेंट दीजे क्षुध् ।।नैवेद्यं।।

भेंटते दीवा,
निढाल-बाल-ढाल !
मेंट दें ‘ही’ ज्ञाँ ।।दीपं।।

भेंटते धूप,
विहर व्याल-चाल !
मेंट दें झूठ ।।धूपं।।

भेंटते फल,
ज्वाल- जगज्-जंजाल !
मेंट दें छल ।।फलं।।

भेंटते अरघ,
फिकर-काल काल !
मेंट दें अघ ।।अर्घ्यं।।

*हाईकू*
हो मुलाकात, किसकी खुदा से,
हैं आप जुदा-से ।।

।।जयमाला ।।

ए ! मस्तानी पवन ।
ए ! मस्तानी पवन ।
तू जा
छू आ
अवर सखे !
गुरुवर के,
निरभिमानी चरण
अहो ! जो
कहो वो

है और कैसे चरण ।
तो विहर जामन मरण ।।
इक अवर तारण तरण !

ए ! मस्तानी पवन ।
ए ! दीवानी पवन ।
तू जा,
छू आ,
अवर सखे,
गुरुवर के,
निरभिमानी चरण,
अहो ! जो,
कहो वो

है और कैसे चरण ।
तो उदासी अपहरण ।।
इक इतर माँ सी शरण ।

ए ! मस्तानी पवन ।
ए !दीवानी पवन ।
तू जा,
छू आ,
अवर सखे,
गुरुवर के,
निरभिमानी चरण,
अहो ! जो,
कहो वो

है और कैसे चरण ।
तो दरद दुःख अपहरण ।।
इक वरद सुख-निर्झरन् ॥
ए ! मस्तानी पवन ।
ए ! दीवानी पवन ।
तू जा,
छू आ,
अवर सखे,
गुरुवर के,
निरभिमानी चरण,
।। जयमाला पूर्णार्घ्यं ।।

*हाईकू*
‘छूटी अक्षर-पद-मात्रा जो,
मिथ्या हो,
कृपया वो’

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