परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 266
*हाईकू*
हमारा बड़ा पुन,
जो आपने ली हमारी सुन ।।स्थापना ।।
सो…ना पा गया पानी महक,
भेेंटूँ मैं भी उदक ।।जलं।।
भेेंटूँ चन्दन,
पाई चन्दन वीर अभिनन्दन ।।चन्दनं।।
पाई चुराना चित् बुलबुल,
भेंटूँ में भी तण्डुल ।।अक्षतं।।
चाँद बतिया रहा गगन,
भेंटूँ मैं भी सुमन ।।पुष्पं।।
भेरी दुनिया में रही बज,
भेंटूँ मैं भी नेवज ।।नेवैद्यं।।
हटके ‘कछु…आ’ रहा सिखा,
भेंटूँ में भी दीपिका ।।दीपं।।
चाल-हंस,
सो चित्त पट,
भेेंटूँ मैं भी धूप-घट ।।धूपं।।
स्वर्ण जटायु पंख-युगल,
भेेंटूँ मैं भी फल ।।फल।।
घड़ियाँ घड़ी-घड़ी सजग,
भेेंटूँ में भी अरघ ।।अर्घं।।
“हाईकू”
चमका भाग-सितारा दिया
गुरुदेव शुक्रिया’
।। जयमाला।।
सद्-गुरु श्री भगवन्
आ-के जरा शरण ।
छू के जरा चरण ।।
लो सुलझा उलझन ।
यही वो, अंधेरे में जो, बनते हैं दिया ।
यही तो, जो प्यास घेरे, तो बनते नदिया ।
हैं मन्शा-पूरण ।
सद्-गुरु श्री भगवन्
आ-के जरा शरण ।
छू कर के आचरण ।
लो सुलझा उलझन।।
यही वो, बिछुड़े को जो, देते हैं मिला ।
यही तो, दुखड़े को, जो करें अलबिदा ।।
हैं दया-अवतरण ।
सद्-गुरु श्री भगवन्
आ-के जरा शरण ।
छू कर के आचरण ।
लो सुलझा उलझन।।
यही वो, भूलों को जो, दें मंजिल थमा ।
यही तो, भूलों को, जो दे मंजुल क्षमा ।
हैं दाता सुमरण ।
सद्-गुरु श्री भगवन्
आ-के जरा शरण ।
छू कर के आचरण ।
लो सुलझा उलझन।।
।। जयमाला।।
“हाईकू”
हो गईं भूल से भूल,
दीजियेगा भुला समूल ॥
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