परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 247
क्या चुम्बक पास गुरु जी ।
जो आते खिंचे सभी ही ।।
क्या वृद्ध जुवाँ क्या बच्चे ।
लगते तुम किसे न अच्छे ।। स्थापना ।।
मुस्कान आप अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
जल स्वीकारो मुनिराया ।
मेंटो माया की माया ।। जलं ।।
तव दया-दृष्टि अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
स्वीकारो चन्दन लाया ।
मेंटो माया की माया ।।चंदनं ।।
तव छाँव राव ! अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
स्वीकरो अक्षत लाया ।
मेंटो माया की माया ।। अक्षतम् ।।
तव न्याय नीति, अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
गुल स्वीकारो ऋषि-राया ।
मेंटो माया की माया ।। पुष्पं ।।
तव नोद-गोद अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
चरु स्वीकारो यति-राया ।
मेंटो माया की माया ।। नैवेद्यं ।।
प्रवचन धरा अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
स्वीकारो दीवा लाया ।
मेंटो माया की माया ।। दीपं ।।
मति-हंस आप अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
स्वीकारो सुगन्ध लाया ।
मेंटो माया की माया ।। धूपं ।।
रज-चरण आप अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।।
फल स्वीकारो प्रद-छाया ।
मेंटो माया की माया ।। फलं ।।
नव-पुरा पीछि अलबेली ।
दे सुलझा हरिक पहेली ।
द्रव स्वीकारो सब लाया ।
मेंटो माया की माया ।। अर्घं।।
==दोहा==
सुनते, रहता आपका,
सबके ऊपर हाथ ।
हम अनाथ भी आ गये,
शरण दीजिये नाथ ।।
।। जयमाला ।।
नूर सदलगा जय हो ।
सुत सरसुत मां जय हो ।।
सन्त शिरोमण जय हो ।
संकट मोचन जय हो ।।१।।
कलि तीर्थंकर जय हो ।
चल भी अक्षर जय हो ।।
भा अनुशासन जय हो ।
जां जिन शासन जय हो ।।२।।
जय हो करुण निधाना ।
जय हो श्रमण प्रधाना ।।
जय हो रक्षक गैय्या ।
जय हो विरक्ष छैय्या ।।३।।
पीछी वायू जय हो ।
जी पूर्णायू जय हो ।।
जय हो क्षमा निकेता ।
जय हो ऊरध रेता ।।४।।
जय हो भाग विधाता ।
जय हो जग इक त्राता ।।
जय हो महज निरा-कुल ।
जय हो सहज मिला कुल ।।५।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
भूलें हा ! होती रहीं,
भनक लगी आ अन्त ।
कर दीजे कृपया क्षमा,
नामी करुणा-वन्त ।।
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