loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 246

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 246

एक तारण तरण ।
एक अकारण शरण ।।
बीच नैय्या भँवर ।
खीच, कर दो उधर ।। स्थापना ।।

हो सकूं निरालस ।
भर नीर के कलश ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। जलं ।।

खो सकूं प्रणय-रस ।
ले कलश मलय-रस ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। चंदनं ।।

खो सकूं कालिमा ।
पय समाँ शालि-धाँ ।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। अक्षतम् ।।

खो सकूं मद-मदन ।
मन लुभावन सुमन ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। पुष्पं ।।

खो सकूं गद-क्षुधा ।
पकवाँ समाँ सुधा ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। नैवेद्यं ।।

हो सकूं ज्ञान वाँ ।
दीव जित-भान भा ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। दीपं ।।

हो सकूं निज निकट ।
ले नूप-धूप घट ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। धूपं ।।

खो सकूं फिकर कल ।
ले सकल सरस फल ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। फलं ।।

खो सकूं लगन अघ ।
ले कुछ अलग-अरघ ।।
भेंटता चरण में ।
लीजिये शरण में ।। अर्घं।।

“दोहा”
पता बुजुर्गों से लगा,
साँचा तेरा द्वार ।
भटक-भटक के आ रहा,
कर दो बेड़ा-पार ।।

।। जयमाला ।।

।। नमन नमन ।।

नूर गगन ।
चूर मदन ।।
दीप रतन ।
सीप शगुन ।।
जेय करण ।
ध्येय शरण ।
नगन श्रमण ।
नमन नमन ।।१।।

प्राप्त मगन ।
आप्त यजन ।।
सार्थ सुमन ।
पार्थ लखन ।।
ध्यान विजन ।
ज्ञान मगन ।।
नगन श्रमण ।
नमन नमन ।।२।।

खत्म भ्रमण ।
आत्म रमण ।।
घात विघन ।
आद चरण ।।
सौख्य सदन ।
सौम्य वदन ।।
नगन श्रमण ।
नमन नमन ।।३।।

चित्त हरण ।
नित्य भजन ।।
हाथ सपन ।
नाथ अपन ।।
सतत जतन ।
विरद प्रशन ।।
नगन श्रमण ।
नमन नमन ।।४।।

।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।। 
“दोहा”
दृग् लाली दृग् को कहाँ,
दिख सकती गुरुदेव ।
दे दीजे इस बार भी,
माफी भाँति सदैव ।।

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point