परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 245
इक मन से, वच से, तन से ।
ओ ! ज्ञान-वृद्ध बचपन से ।।
गुरु ज्ञान चरण अनुरागी ।
दो जोड़ प्रीत सच धन से।। स्थापना।।
तुमसे विवेक पा हंसा ।
रत निंदा स्व, पर-प्रशंसा ।।
लाये भर कर जल झारी ।
मेंटो मति रावन-कंशा ।। जलं।।
तुमसे विवेक पा मीना ।
सीखी जा गहरे जीना ।।
लाये भर चन्दन झारी ।
भर दो रँग संध्या तीना ।। चंदनं ।।
तुमसे विवेक पा हिरणा ।
बन गया दया का झिरना ।।
लाये भर अक्षत थाली ।
लो थाम, जाऊँ मैं गिर ना ।। अक्षतम् ।।
तुमसे विवेक पा कोकिल ।
सीखा हरना हर का दिल ।।
लाये भर पुष्प पिटारी ।
दो थमा आखरी मंजिल ।। पुष्पं ।।
तुमसे विवेक पा गायें ।
शाकाहारी कहलायें ।।
लाये भर चरु-घृत थाली ।
अब वेदन-क्षुधा मिटायें ।। नैवेद्यं ।।
तुमसे विवेक पा धागे ।
रिश्ते, तुरपन में आगे ।।
लाये भर घृत दीपाली ।
बन मृग-मन और न भागे ।। दीपं ।।
तुमसे विवेक पा खेती ।
ले जर्रा, ज्यादा देती ।।
लाये भर सुगन्ध थाली ।
भर पेट, सकूँ तज पेटी ।। धूपं ।।
तुमसे विवेक पा मैना ।
कर्त्तव्य निरत दिन-रैना ।।
लाये भर ऋतु-फल थाली ।
कर लो गुरु जी निज गहना ।। फलं ।।
तुमसे विवेक पा नौका ।
खा रही खिला ना धोखा ।।
लाये भर द्रव-सब थाली ।
लो खुद सा बना अनोखा ।। अर्घं ।।
=दोहा=
सुन, बन मरहम आपको,
आया हरना पीर ।
भटक-भटक, दर-आप सो,
आके खड़े अखीर ।।
।। जयमाला ।।
।। वन्दना वन्दना ।।
गोपाल वन्दना ।
त्रैकाल वन्दना ।।
नम नैन वन्दना ।
अमि वैन वन्दना ।।१।।
कलि क्षेम वन्दना ।
जल हेम वन्दना ।।
जित अक्ष वन्दना ।
इक लक्ष्य वन्दना ।।२।।
गत-शोक वन्दना ।
पत मोख वन्दना ।।
चल तीर्थ वन्दना ।
कलि कीर्ति वन्दना ।।३।।
निर्माण वन्दना ।
कलि…यान वन्दना ।।
अनगार वन्दना ।
गुणकार वन्दना ।।४।।
छव सूर वन्दना ।
नव नूर वन्दना ।।
गुण नन्त वन्दना ।
श्री मन्त नन्दना ।।५।।
जयमाला पूर्णार्घं
=दोहा=
जान-बूझ कर की नहीं,
कई हुईं पै भूल ।
कृपया कर गुरु जी उन्हें,
चखा दीजिये धूल ।।
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