परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 242
कहर बरपा हा ! पाप का ।
कलि सहारा हाँ आपका ।।
मेरे सिर पर छाँव कीजे ।
गाँव शिर-पुर नाव कीजे ।। स्थापना।।
घर घर में, है मधुशाला ।
घर घर में, है ‘वसु’ काला ।।
भरा-मुख जल पात्र लाया
बना रखिये छत्र-छाया ।। जलं ।।
घर घर में, बगला भक्ति ।
घर घर में, अबला सख्ती ।।
भरा चन्दन, पात्र लाया ।
बना रखिये, छत्र छाया ।। चंदनं ।।
घर घर में, रावन कंशा ।
घर घर, वृष माहन-ध्वंसा ।।
भरा अक्षत, पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। अक्षतम् ।।
घर घर में, नागिन माता ।
घर घर में, अनबन भ्राता ।।
भरा फुलवा, पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। पुष्पं ।।
घर घर में, टोका-टाँकी ।
घर घर में, ताँका-झाँकी ।।
भरा पकवाँ, पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। नैवेद्यं ।।
घर घर में, बजते बर्तन ।
घर घर में, ताण्डव नर्तन ।।
भरा दीवा,पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। दीपं ।।
घर घर में, ‘तरेरना-दृग्’ ।
घर घर में, मुँ फेरना धिक् ।।
भरा सुगन्ध, पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। धूपं ।।
घर घर में, खाना होटल ।
घर घर में, पानी बोतल ।।
भरा ऋतु फल, पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। फलं ।।
घर घर में, पश्चिमी हवा ।
घर घर में, मातमी जुबाँ ।।
भरा द्रव सब पात्र लाया ।
बना रखिये छत्र छाया ।। अर्घं ।।
==दोहा==
नहिं इकाध पन-पाप से,
रहता चित्त मलीन ।
क्यों नहिं नाहक जायेंगीं,
मेरीं संध्या तीन ।।
।। जयमाला ।।
आरती उतारो ले दीप, आओ मिल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।
मनोकामना पूर्ण ! हरतार दुखड़ा ।
निकलंक पूनम शरद् चाँद मुखड़ा ।।
भवि-भागन-वशि आये, दक्षिण से चल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।१।।
ग्राम ‘सदल-गा’ में अवतार लीनो ।
धन्य मल्लप्पा, माँ श्रीमन्ति कीनो ।।
बचपन से पग अपने, रक्खें सँभल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।२।।
दिश-भूषण सूरि साक्षि व्रत-ब्रह्मचारी ।
सूरि ज्ञान-सिन्धु साक्षि दीक्षा तुम्हारी ॥
आज सूरि-निर्ग्रन्थ, भगवन्त कल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।३।।
दीक्षा श्रमण, अर्जिका मॉं बनाईं ।
खोलीं गो-शालाएँ, कविता रचाईं ।।
पर पीड़ा देख बने, नेत्र-स्रोत जल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।४।।
गुण आप उतने, जितने सितारे ।
देवों के गुरु कहके, दो-शब्द हारे ।।
‘निराकुल’ न पार पारावार बाहु-बल के ।
छोटे-बाबा में, गुरु कुन्द-कुन्द झलके ।।५।।
जयमाला पूर्णार्घ्य
==दोहा==
धीरे-धीरे हो गया,
भूलन खड़ा पहाड़ ।
धरा-धरा दीजे उसे,
नभ से जरा उतार ।।
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