परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 241
ओ महा-विद्या-आलय ।
हो रहा विद्या का लय ।।
कृपा-कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। स्थापना।।
लगा इतिहास पलटने ।
लगे शिक्षक भी बिकने ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। जलं ।।
गुमें आदर्श हमारे ।
शिष्य गुरु को ललकारे ।।
कृपा कर जगहा-जगहा
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। चंदनं ।।
पढ़ें पुस्तक अनगिनती ।
पे समझ राखें कमती ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। अक्षतम् ।।
‘को-एज्युकेशन’ आया ।
पश्चिमी छाई माया ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। पुष्पं ।।
बने रट-रट सब तोते ।
हाथ मलते कल रोते ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। नैवेद्यं ।।
पैर में चप्पल-जूते ।
पढ़ रहे रख मुँह-झूठे ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। दीपं ।।
मृग सी खोजें कस्तूरी ।
हुई कोचिंग जरूरी ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। धूपं ।।
मस्त डेटिंग में बच्चे ।
व्यस्त चैटिंग में बच्चे ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। फलं ।।
खूब सेटिंग होती है ।
डूब रैकिंग होती है ।।
कृपा कर जगहा-जगहा ।
दो-खुला संस्थलि प्रतिभा ।। अर्घं।।
==दोहा==
पास ऐव न कौन सी,
तर मुख जेब फरेब।
क्यों ना फिर गुरु देव जी,
करे परेशां दैव ।।
।। जयमाला ।।
अंधेरे हैं ।
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
हम तेरे हैं ।
डर समाया ।
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
बस मैं आया ।।
अंधेरे हैं |
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
हम तेरे हैं ।
छाये बदरा ।
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
छू वो खतरा ।।
अंधेरे हैं |
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
हम तेरे हैं ।
वरपा कहर ।
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
है हमें फिकर ।।
अंधेरे हैं ।
दो कह इक दफा ।।
ओ मेरे खुदा !
हम तेरे हैं ।
जयमाला पूर्णार्घं
==दोहा==
भूल चूक दो चार ना,
गुरु जी ! हुईं हजार ।
उनकी माफी का मुझे,
दे दीजे उपहार ।।
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