परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 220
लाज सभी की रख लेते ।
काज बना सब के देते ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। स्थापना ।।
रात शरद पूनम वाली ।
मनी सदलगा दीवाली ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। जलं ।।
आये मल्लप्पा आंगन ।
झूमे श्री मन्ती माँ-मन ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। चंदनं ।।
बालक प्रत्युत्पन्न मती ।
कवि न, रवि की वहाँ गती ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। अक्षतम् ।।
खेल-कूद में भी आगे ।
सुलझे से रिश्ते धागे ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। पुष्पं ।।
श्रमण देश भूषण चरणा ।
तारण-तरण अपर शरणा ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। नैवेद्यं ।।
अद्भुत गोम्मटेश महिमा ।
राह गई मिल व्रत प्रतिमा ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। दीपं ।।
सच गुरु ज्ञान-ज्ञान सागर ।
विद्याधर विनीत गागर ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। धूपं ।।
धन अजमेर नगर प्यारा ।
चमका जैन भाग-तारा ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। फलं ।।
फिर क्या कई निर्ग्रन्थ हुये ।
मति-मराल गृह सन्त हुये ।।
वे छोटे बाबा सबके ।
रूप दूसरे ही रब के ।। अर्घ ।।
==दोहा==
सुन, अपना लेते उसे,
जो भी आये द्वार ।
द्वार खड़ा सुन लीजिये,
कृपया करुण पुकार ।।
।। जयमाला ।।
श्री गुरु के चरण निराले हैं ।
दुख दर्द विहरने वाले हैं ।।
इनके बिन नहिं अपना कोई ।
जग हित अपने रोई-धोई ।।
उलझन सुलझाने वाले हैं ।
श्री गुरु के चरण निराले हैं ।
दुख दर्द विहरने वाले हैं ।।
इक यही सगे संगी साथी ।
तम देख भाग छाया जाती ।।
इक जगत् जगत रखवाले हैं ।
श्री गुरु के चरण निराले हैं ।
दुख दर्द विहरने वाले हैं ।।
ये साथ-साथ तो दीवाली ।
दृग् उठा न सके नजर काली ।।
कलि दीपक रतन उजाले हैं ।
श्री गुरु के चरण निराले हैं ।
दुख दर्द विहरने वाले हैं ।।
उलझन सुलझाने वाले हैं ।
इक जगत् जगत रखवाले हैं ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
यही वीनती आपसे,
हाथ जोड़ सिर टेक ।
मिटा विरह-गुरु दीजिये,
लिख गुरु-मिलन सुलेख ।।
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