परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 213
नफरत नहीं किसी से,
मतलब तुम्हें सभी से ।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। स्थापना ।।
ज्यों घर अमीर बढ़िया ।
त्यों ही तुम्हें झुपड़िया ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। जलं ।।
बस हाथ-अभय उठता ।
करीबी न गैर तकता ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। चंदनं ।।
भगवान् मिलती जुलती ।
मुस्कान एक मिलती ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। अक्षतम् ।।
बिगड़ी बनाने वाले ।
पगड़ी थमाने वाले ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। पुष्पं ।।
घर बहिर न पग रखते ।
जग-भर की खबर रखते ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। नैवेद्यं ।।
झोली भरने वाले ।
इक हम-जोली न्यारे ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। दीपं ।।
आलस हर लेते गम ।
साहस भर देते दम ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। धूपं ।।
करते हो प्यार ऐसे ।
करे माँ दुलार जैसे ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। फलं ।।
किस तरफ नहीं चर्चा ।
हर तरफ तिरी अर्चा ।।
ओ नूरे आसमानी ।
दो सँवार जिन्दगानी ।। अर्घं ।।
==दोहा==
दागदार मुख चन्द्रमा,
कहाँ आप बेदाग ।
वरवश ही मन कह रहा,
छेडूँ तव गुण राग ।।
।। जयमाला ।।
जल से भिन्न कमल गुरु जी ।
खुद से नैन सजल गुरु जी ।।
एक सजग पल-पल गुरु जी ।
अंगद पग अविचल गुरु जी ।।१।।
गुरु जी दर्शनीय अपलक ।
गुरु जी कलि भगवन्त झलक ।।
गुरु जी ख्यात दिगन्त तलक ।
गुरु जी वन्दित इन्द्र शतक ।।२।।
नन्दन पुष्प महक गुरु जी ।
उपवन आम्र चहक गुरु जी ।।
शिख-शिख दिल धक-धक गुरु जी ।
कुछ कुछ बनकर चरक गुरु जी ।।३।।
गुरु जी साही मुलक मुलक ।
गुरु जी राही अरुक अथक ।।
गुरु जी जग रोशन चकमक ।
गुरु जी गोधन संरक्षक ।।४।।
प्रतिकृति कुन्द कुन्द गुरु जी ।
दृग् नम दरदमन्द गुरु जी ।।
चल माहन्त ग्रन्थ गुरु जी ।
सहजो सरल सन्त गुरु जी ।।५।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
कर इतनी सी दो कृपा,
मन्शा पूरण एक ।
अपने सा ही लो बना,
करुण-हृदय दिल-नेक ।।
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