परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 206
ग्रीषम तरुवर-सी छैय्या हैं ।
नैय्या-गो यही खिवैय्या हैं ।
छोटे बाबा ! पा इन्हें आज ।
थिरकें गो ता-था-थैय्या हैं ।। स्थापना ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
झोली शशि-तारक दल आया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। जलं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
‘पत-झड़’ दुख सुख सावन आया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। चंदनं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
दुनिया बदली बिखरी माया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। अक्षतम् ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
सुख उल्लेखित-श्रुत उपजाया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। पुष्पं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
वंशी सुख चैन बजा पाया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। नैवेद्यं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
आकाश स्वप्न हर छू आया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। दीपं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
चिर-उलझी-उलझन सुलझाया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। धूपं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
भासा पुनि राम-राज आया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। फलं ।।
गायों ने क्या ? इनको पाया ।
छट गया बदलियों का साया ।।
सिर्फेक विनन्ती आगे भी ।
रखिये बनाय छत्रच्छाया ।। अर्घं।।
==दोहा==
सुन, पुकार ली आपने,
गायों की गुरुदेव ।
मेरी भी भर दीजिये,
गुण-सम्पद-जिन जेब ।।
।। जयमाला ।।
नंद लाला गोपाला ।
कल थे, गायों के ।।
आज हो, तुम अहो ।
ओ माँ, श्री मन्ति लाला ।।
दया तुमने बरषाई ।
गैय्या लो मुस्कुराई ।।
रोई देर तभी अभी,
सिसकी न थम पाई ।
नंद लाला गोपाला ।
कल थे, गायों के ।
आज हो तुम अहो ।
ओ माँ, श्री मन्ति लाला ।।
तुमने ही तो, जो उसे,
‘कि लगाया सीने से ।
वरना, वो थी आई तंग,
यूँ बेरंग जीने से ।।
नंद लाला गोपाला ।
कल थे, गायों के ।
आज हो , तुम अहो ।
ओ माँ, श्री मन्ति लाला ।।
तुम्हीं सिर्फ वो जो,
बन ‘कि आये संजीवन ।
वरना खो चुकी होती,
गैय्या कब का जीवन ।।
नंद लाला गोपाला ।
कल थे, गायों के ।।
आज हो,तुम अहो ।
ओ माँ, श्री मन्ति लाला ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा ==
अरजी यही अखीर में,
इन गायों के साथ ।
करुणा बरसाते रहें,
भाँति इसी दिन रात ।।
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