परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 197
भँवर बीच मेरी नैय्या |
तुम्हीं हमारे खेवैय्या ।।
पार लगा दो कर करुणा ।
हमें तिहारी ही शरणा ।। स्थापना ।।
लाये हम जल झारी भर ।
करने पद-अविकारी कर ।।
करुणा-कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। जलं ।।
लाये भर चन्दन गागर ।
बनें न यूँ रहने पामर ।।
करुणा-कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। चंदनं ।।
लाये भर अक्षत थाली ।
पाने शाश्वत खुशहाली ।।
करुणा कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। अक्षतम् ।।
लाये पुष्प सुकोमल हम ।
करने बिलकुल ही छल गुम ।।
करुणा-कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। पुष्पं ।।
व्यञ्जन लिये सलोने हम ।
आये मुनि-मन होने हम ।।
करुणा कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। नैवेद्यं ।।
लाये दीवा घृत वाले ।
पाने श्रुत अमृत प्याले ।।
करुणा कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। दीपं ।।
धूप-थाल सुरभि वाला ।
सपना आप-पाठ-शाला ।।
करुणा-कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। धूपं ।।
पके-पके फल वरन-वरन ।
मिलें छूबने आप चरण ।।
करुणा-कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। फलं ।।
द्रव्य आठ ले आये हम ।
उलझे कर्म-आठ परचम ।।
करुणा-कर कीजे करुणा ।
शरणा-वर दीजे शरणा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जादू गुरु की बात में,
सुन ले जो इक बार ।
वो सबसे, उससे सभी,
करने लगते प्यार |
।। जयमाला ।।
अपना हमारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
सपनों से प्यारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
पश्चिम हवा ।
आज है दब-दबा ।।
संस्कृति सहारा ।
तू ही है ,
इक तू ही है ।।
अपना हमारा ।
तू ही है ,
इक तू ही है ।।
सपनों से प्यारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
वह रो रही ।
कुछ न कह गो रही ।।
कलियुग गुपाला ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
अपना हमारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
सपनों से प्यारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
हाल बेहाल ।
नोजवाँ नौ-निहाल ।।
किस्मत सितारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
अपना हमारा ।
तू ही है,
इक तू ही है ।।
सपनों से प्यारा ।
तू ही है ,
इक तू ही है ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
नाम लिखा गुरुदेव का,
जिसने हृदय प्रदेश |
पाने को क्या रह गया,
पा जो लिया अशेष ।।
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