परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 189
हम बच्चों के अरमान ।
दिल सच्चों के भगवान् ।।
सदलगा ग्राम के सन्त ।
नित वन्दन तुम्हें अनन्त ।। स्थापना ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
नहिं बड़े-बड़े अरमान ।
मिल जाये इक मुस्कान ।। जलं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
नहिं ज्यादा कुछ अभिलाष ।
लो दास बना निज खास ।। चंदनं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
ना मुमकिन न फरियाद ।
सिर पे रख दो बस हाथ ।। अक्षतम् ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
नहिं बड़े-बड़े अरमान ।
दे दो दो-पल का दान ।। पुष्पं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
नहिं ज्यादा कुछ अभिलाष ।
आ श्वास करो आवास ।। नैवेद्यं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
ना-मुमकिन न फरियाद ।
दो कर लो मीठी बात ।। दीपं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
नहिं बड़े-बड़े अरमान ।
दो भीतर का कुछ ज्ञान ।।धूपं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
नहिं ज्यादा कुछ अभिलाष ।
रख नजरों के लो पास।। फलं ।।
गुरु जी दो आशीर्वाद ।
हो जाये पूर्ण मुराद ।।
ना-मुमकिन न फरियाद ।
सँग कर लो शिव-बारात ।।अर्घ ।।
==दोहा==
नोंक झोंक में आ नहीं,
रहा जिन्हें आनन्द ।
गुरु विद्या निर्द्वन्द्व वे,
विध्वंसें भव-फन्द ॥
॥ जयमाला ॥
सब सन्तों से न्यारे हैं ।
ज्ञान सिन्धु दृग् तारे हैं ।।
माँ श्री मन्ति ‘पिता’ सपने ।
ना दश दिश् किस के अपने ।।
शरद पूर्णिमा शशि न्यारे ।
ग्राम सदलगा उजियारे ।।
जुवाँ मराठी रस रसिया ।
कन्नड़ जुवाँ हृदय वसिया ।।
पढ़े दूसरी ही कक्षा ।
खेल न को ! खेले अच्छा ।।
हाथ दाहिने दीनों के ।
साँझ नुरागी तीनों के ।।
भक्त देश-भूषण मुनि के ।
रहित द्वेष दूषण, गुणि से ।।
अंक खूब लेने वाले ।
रंक खूब देने वाले ।।
निर्ग्रन्थन निर्ग्रन्थ महा ।
आये गुण गण अन्त कहाँ ।।
मौन इस लिये लेता हूँ ।
ढ़ोक बस इन्हें देता हूँ ।।
।। जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
धर्म अहिंसा केत ।
कर बहि-रन्तर लो मुझे,
अपने सा ही श्वेत ॥
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