परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 183
जन जिन्हें निराकुल कहते हैं ।
मुस्कान बाँटते रहते हैं ।।
माँ श्रीमति मल्लप्पा नन्दन ।
शत सतत तिन्हें सविनय वन्दन ।। स्थापना ।।
लाये घट प्रासुक जल भर के।
नहिं निलय बने किस-किस डर के ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
विघटा दो भव-भव के बन्धन ।। जलं ।।
भर लाये रज मलयज कलशे ।
कलि विकसाना चाहा बल से ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
विघटा दो वन निर्जन क्रन्दन ।। चंदनं ।।
लाया धाँ-शालि के दाने ।
पद अब अखण्ड अक्षत पाने ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
दो नादि नन्त सुलझा उलझन ।। अक्षतम् ।।
हैं रंग-बिरंगे फूल लिये ।
नहिं कहो कौन सी भूल किये ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
भूलों का करें न अभिनन्दन ।। पुष्पं ।।
घृत दिव्य-दिव्य व्यंजन लाये ।
हा ! ध्वज व्यसनों का लहराये ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
जा जा न छुये व्यसनों को मन ।। नैवेद्यं ।।
माला ले दीवा घृत वाली ।
मन सकी न अब तक दीवाली ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
लग हाथ जाय अब शिव-स्यंदन ।। दीपं ।।
सुरभित सुगंध लाये नीकी ।
कल्याणी कब, ‘वाणी’ तीखी ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
हर लो वचनों का दारिद पन ।। धूपं ।।
ऋतु-ऋतु के लाये फल सारे ।
छाये जीवन में अंधियारे ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
दो बाग-बाग कर मन-वच-तन ।। फलं ।।
वसु-विध ले द्रव्य सभी आया ।
हा ! बोल रही सिर चढ़ माया ।।
माँ श्री मति मल्लप्पा नन्दन ।
दो लगा माथ सुमरण चन्दन ।। अर्घं।।
==दोहा==
जिनसे बहने की कला,
की सरिता ने हाथ ।
गुरु विद्या प्रभु भाँत वें,
करें नेह बरसात ।।
॥ जयमाला ॥
जप मन सुबहो शाम ।
विद्या सागर नाम ।।
कल जुग मंगलकार।
एक अमंगलहार ।।
कल्पवृक्ष गो-काम।
विद्यासागर नाम।
जप मन सुबहो शाम ।
विद्यासागर नाम ।।
शरण सहाई एक ।
सुख-दाई अभिलेख ।।
मन-मृग दौड़ विराम।
विद्यासागर नाम ।
जय मन सुबहो शाम ।
विद्यासागर नाम ।।
हर लेता भव पीर ।
रख देता उस तीर ।।
नौका मोखा धाम ।
विद्या सागर नाम ।
जप मन सुबहो शाम ।
विद्यासागर नाम ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
तरु से भी बढ़ कर रही,
श्री गुरु जी की छाँव ।
सिर्फ घाम न, हर रही,
सँग-सँग हरे तनाव ॥
Sharing is caring!