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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 169

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 169

जय हो जय हो ।
विद्या सिन्धु अहो ।।
आ मेरे हृदय रहो ।
चरणों में अपने रख लो |
अपनों में अपने रख लो ।
आ मेरे हृदय रहो ।
विद्या सिन्धु अहो ।।
जय हो जय हो जय हो ।। स्थापना ।।

आप आये शरण ।
नीर लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
मेंटो जामन मरण ।। जलं ।।

आप आये शरण ।
गंध लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
मेंटो कानन रुदन ।। चन्दनं ।।

आप आये शरण ।
अक्षत लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
भेंटो सावन अमन ।। अक्षतम् ।।

आप आये शरण ।
पुष्प लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।।
मेंटो शासन-मदन ।। पुष्पं ।।

आप आये शरण ।
चरु लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
भेंटो माहन सदन ।। नैवेद्यं ।।

आप आये शरण ।
दीप लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
भेंटो पावन वचन ।। दीपं ।।

आप आये शरण ।
धूप लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
भेंटो दामन-श्रमण ।।धूपं ।।

आप आये शरण ।
सिफल लाये चरण ।।
अहो तारण-तरण ।
भेंटो भावन रतन ।। फलं ।।

आप आये शरण ।
अरघ लाये चरण ।
अहो तारण-तरण ।
मेंटो पापन गमन ।। अर्घं।।

==दोहा==
मचलें गुरु जी नैन ये,
करने तुम दीदार ।
इनके दृढ़ विश्वास की,
हो नहिं जाये हार ॥

॥ जयमाला ॥

।।गुरु जी नमो नमः।।

थे बड़े-बड़े भगवन् ।
छोटे उनके थे सदन ।।
जिन मंदिर दिये छुवाँ आसमाँ ।
गुरु जी नमो नमः ।।

थे मन के भले सच्चे ।
पै भूले भटके बच्चे ।।
दिया छुवा आसमाँ, बन बागवाँ ।
गुरु जी नमो नमः ।।

डरते थे लोग तप-से ।
सुन नाम जाँय कँप से ।।
दिया मुकाम थमा, बन रहनुमाँ ।
गुरु जी नमो नमः ।।

बह चली थी खूँ नदिया ।
था बुझने को ही दिया ।।
बना दिया समा, बेहतरीन खुशनुमा ।
गुरु जी नमो नमः ।।

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

==दोहा==
मात पिता तुम देवता,
बन्धु भगिनी तुम मीत ।
धड़क रहा कुछ और ना,
धड़कन मिस तुम गीत ॥

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