परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 167
भिजाने वाले शिव ग्राम ।
बनाने वाले सब काम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। स्थापना ।।
जल झारी लिये ललाम ।
थक टिक न बैठने शाम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। जलं ।।
रस मलयज लिये ललाम ।
पाने सम्यक्त्व इनाम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। चंदन ।।
सित अक्षत लिये ललाम ।
रहने जागृत वसु याम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। अक्षतम् ।।
गुल थाल लिये अभिराम ।
हित कामे-काम तमाम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। पुष्पं ।।
घृत व्यंजन लिये ललाम ।
विहँसाने सनेह नाम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। नैवेद्यं ।।
घृत दीप लिये अभिराम ।
पथ विसराने विश्राम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। दीपं ।।
दश गंध लिये अभिराम ।
विहँसाने विषयन घाम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। धूपं ।।
फल मधुर लिये अभिराम ।
पाये मन पलक विराम |।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। फलं ।।
वसु द्रव्य लिये अभिराम ।
करने जित दृग्-संग्राम ।।
हनुमंत भक्त मुझ राम ।
गुरु विद्या सिन्धु प्रणाम ।। अर्घं ।।
==दोहा==
जिनने गुरु से जोड़ ली,
प्रीत, हुई लो जीत ।
आओ हम भी जोड़ते,
गुरु-गुण से निज-प्रीत ।।
॥ जयमाला ॥
नहिं दूजी और मुराद ।
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
किस काम के है रुपये ।
किस काम का है रूप ये ॥
ढ़ल प्रात, आ रही रात ।
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
किस काम का है ये मकाँ ।
किस काम की है ये दुकाँ ।।
सब ‘छू’ दृग् मुदने बाद ।
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
किस काम की है माया ।
बस नाम की है काया ।।
छाया तम खाये मात ।
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
बाग किस काम का बगीचा ।
राग सुबहो-शाम जिसे खीचा ।।
मलते रह जाना हाथ ।
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
किस काम का हा ! संगी ।
दुनिया बड़ी दुरंगी ।।
माँ भी दे नागिन साथ ।
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
नहिं दूजी और मुराद,
बस चाहूँ आशीर्वाद ।।
॥ जयमाला पूर्णार्घं ॥
==दोहा==
गुरु के आशीवार्द की,
बड़ी निराली बात ।
क्या नहीं आ जाता कहो,
आते आते हाथ ॥
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