परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 152
नुति,
यति ।
हित,
मति ।। स्थापना ।।
सित-पल ।
हित जल ।। जलं ।।
चन्दन ।
हित गुण ।। चन्दनं ।।
अक्षत ।
हित सत् ।। अक्षतम् ।।
सित कुल ।
हित गुल ।।पुष्पं ।।
सत् गुरु ।
हित चरु ।। नैवेद्यं ।।
दीवा ।
हित ध्याँ ।। दीपं ।।
धूपम् ।
हित शम ।। धूपं ।।
सित-कल ।
हित फल ।। फलं ।।
सित मग ।
हित ऽरघ ।। अर्घ ।।
==दोहा==
मुश्किल, गुरु गुणगान से,
पल में हो आसान ।
देर तलक आ छेड़ते,
गुरु गुण कीर्तिन तान ॥
॥ जयमाला ॥
गुणी ! (गुणी बनाती है )
मुनी (मुनि)
ध्वनि ! (वाणी)
सुनी ! (सुनते हैं)
सुनी ! (इसलिये सुनी मैंने)
मुनी ! (मुनि)
ध्वनि ! (वाणी)
गुणी ! (गुणकारी)
मुनी ! (और मुनि)
ध्वनि ! (वाणी)
सुनी ! (जो सुनी)
गुनी ! (उसको गुन कर)
गुणी ! ( गुणवान )
मुनी ! (मुनि हो गया)
ध्वनि ! (ऐसी ध्वनि धन्य है )
सुनी ! (क्या आपसे सुनी,
कृपया सुनके गुनियेगा
मुनि बनियेगा)
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==दोहा==
यही विनय हैं आपसे,
श्रमण संघ अध्यक्ष ।
स्वयं समाँ कर लो हमें,
कक्ष दूसरी दक्ष ॥
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