परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 146
श्री गुरु चरण ।
तारण तरन ।।
इसलिये, आये शरण।। स्थापना ।।
जाये पलक ।
आतम झलक ।।
इसलिये, लिये उदक ।। जलं ।।
सम चन्दन ।
बने जीवन ।।
इसलिये, लिये चन्दन ।। चन्दनं ।।
पद अछत ।
आये हँसत ।।
इसलिये, लिये अछत ।। अक्षतम् ।।
सम सुमन ।
होय मन ।।
इसलिये, लिये सुमन ।। पुष्पं ।।
क्षुध् ‘जी ये ।
खुद छीजे ।।
इस ‘लिये’, चरु घी के ।। नैवेद्यं ।।
सम-दिये ।
हो ‘जि ये ।।
इसलिये, दिये-लिये ।। दीपं ।।
पाप-बन्ध ।
पाय न सन्ध ।।
इसलिये, लिये सुगंध ।।धूपं ।।
छल छिये ।
सल ‘जि ये ।।
इसलिये, फल लिये ।। फलं ।।
मग-सुरग ।
पाऊँ शिव मग ।।
इसलिये, लिये अरघ ।।अर्घं ।।
==दोहा==
सीख रबर जिनसे गई,
करने पेज सफेद ।
गुरु विद्या श्रुत सेतु वे,
करें निकट शिव खेत ॥
॥ जयमाला ॥
हंस शिशु मानस-सरोवर,
गोद में माँ मुस्कुराता ।
दुग्ध धारा सा धवल तन,
बड़ा मन मोहक सुहाना ॥
प्रकृति सारी भूल बैठी,
लख जिसे पलकें झपाना ।
खिल खिलाता, खिल खिलाने,
फूल लगते, झूमता तो ॥
झूम उठता पात दल,
दल पंछी, सँग गाये तराना ।
ओर-दाँई तिल रहा जो ,
गाल पे कृतिकार ने सो ॥
लग ना जाये नजर भेजा,
दिढ़ोने से जोड़ नाता ।
हंस शिशु मानस-सरोवर ,
गोद में माँ मुस्कुराता ॥
गौर शशि के भाँति अन्तर् मनस्,
अर लट घनी काली ।
तुहिन-नेह विदग्ध कल्मष,
बिछी मिस घट धूम जाली ॥
बिच भ्रुओं के तिलक चंदन,
नेत्र तिजा ही अनूठा ।
और की क्या बात बंगले,
झाँकती है मति-मिराली ॥
स्वर्ण निर्मित ‘हाय’ जड़ी-मणी,
भेद विज्ञानी अनूठी ।
क्षीर का हो क्षीर जिससे,
नीर का हो नीर जाता ।
हंस शिशु मानस सरोवर,
गोद में माँ मुस्कुराता ॥
अमृत निर्झर दिव्य आहा,
अँगूठे में पैर दाँये ।
मुदित उसका झूम मस्ती में,
किये रस पान जाये ।।
तब फटिक मणि भाँति निज-पग,
नखों से निकली प्रभा से ॥
गया जो चक चौधियाँ सो,
नयन जुग लो मिचमिचाये ।
खोलता की नैन सुलझाये,
पहेली निज हथेली ॥
आँख पे रखते ‘कि मुख से ,
पग अँगूठा छूट जाता ।
हंस शिशु मानस सरोवर,
गोद में माँ मुस्कुराता ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही विनती आपसे,
त्रिभुवन खेवनहार ।
पा जाये झोली मेरी,
चाँद सितारे चार ॥
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