परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 142
ओ ! लघु नन्दन पुरुवर ।
छवि कुन्द-कुन्द गुरुवर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
दो थमा सुकून डगर ।।स्थापना ।।
कर कर जल आये दर ।
कब कब न काल का डर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
साहस दो ढ़ाढ़स भर ।।जलं ।।
ले चंदन आये दर ।
ले रही न ‘रबर’ खबर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
दो सुलझा उलझन हर ।। चन्दनं ।।
ले अक्षत आये दर ।
पद अथिर कर रहा घर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
ले सिद्धन चलो शहर ।। अक्षतम् ।।
ले पहुपन आये दर ।
दिखलाय काम तेवर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
मन ‘सर’ दो सिरा लहर ।।पुष्पं ।।
ले व्यंजन आये दर ।
बरपा क्षुध् रही कहर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
दो दिखा स्वात्म निर्झर ।। नैवेद्यं ।।
ले दीवा आये दर ।
सिर चढ़ बोले अन्धर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
कह दो, है हमें फिकर ।। दीपं ।।
ले सुगन्ध आये दर ।
कर्मों का बसे शहर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
पाऊँ धर, कर पर कर ।।धूपं ।।
ले ऋतु फल आये दर ।
कर बसर न रही सबर ।।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
दुख दर्द लो विहर हर ।।फलं ।।
ले द्रव-सब आये दर ।
अरमाँ सब रहे बिखर ।
सुत सागर ज्ञान अपर ।
लख लीजे एक नजर ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सीख पेज जिनसे गया,
परहित बनना श्याह ।
गुरु विद्या शिव-शाह वे,
देवें मुझे पनाह ॥
॥ जयमाला ॥
था भूमि पे भार ।
दी जिंदगी सँवार ।।
गुरु जय जय कार ।
ठेठ बाँस थे हम ।
दी जो निकाल सरगम ।।
किया बड़ा उपकार ।।
गुरु जय जय कार ।
था भूमि पे भार ।
दी जिंदगी सँवार ।।
गुरु जय जय कार ।
थे माटी से दृग्-तर ।
जो बिठा दिया सर पर ।।
किया मिरा उद्धार ।
गुरु जय जय कार ।।
था भूमि पे भार ।
दी जिंदगी सँवार ।।
गुरु जय जय कार ।
थे साधारण धागे ।
बुन, किये जो बड़भागे ।।
कीना बेड़ा पार ।
गुरु जय जय कार ।।
था भूमि पे भार ।
दी जिंदगी सँवार ।।
गुरु जय जय कार ।
थे अनगढ़ पाहन ।
जो किया पूत पावन ।।
दिया उतार सर-भार ।
गुरु जय जय कार ।।
था भूमि पे भार ।
दी जिंदगी सँवार ।।
गुरु जय जय कार ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यहीं,
भक्तन इक भगवान ।
अन्त समय तुम गोद में,
निकसें मेरे प्राण ॥
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