परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 139
माँ श्रीमति नयन सितारे ।
मल्लप्पा कुल उजियारे ।।
गुरु-कुल गुरु ज्ञान दिवाकर ।
जय जय गुरु विद्या सागर ।। स्थापना ।।
आये गुरु द्वार तुम्हारे ।
लाये घट जल के न्यारे ।।
मन चले न पथ बंजारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। जलं ।।
आये गुरु द्वार तुम्हारे ।
लाये घट चन्दन न्यारे ।।
मन मानस आत्म निहारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। चन्दनं ।।
आये गुरु द्वार तुम्हारे ।
अक्षत के लिये पिटारे ।।
मन वक्त न यूँ हि गुजारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। अक्षतम् ।।
आये गुरु द्वार तुम्हारे ।
पुष्पों के लिये पिटारे ।।
मन गहल कुटेव निवारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। पुष्पं ।।
आये गुरु द्वार तुम्हारे ।
व्यंजन के लिये पिटारे ।।
मन पाप भाव सँहारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। नैवेद्यं ।।
आये गुरु द्वार तुम्हारे ।
ले थाल दीप घृत न्यारे ।।
मन समझे दैव इशारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। दीपं ।।
आये गुरु द्वार तिहारे ।
ले नूप धूप-घट न्यारे ।।
मन आँगन आप बुहारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। धूपं ।।
आये गुरु द्वार तिहारे ।
ऋतु फल के लिये पिटारे ।।
मन हृदय न अपर विदारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।। फलं ।।
आये गुरु द्वार तिहारे ।
ले वसु-विध दरब पिटारे ।।
मन चंचल चाल विसारे ।
कृपया गुरुदेव हमारे ।।अर्घं ।।
==दोहा==
सीखा जिनसे मेघ ने,
अपहरना पर पीर ।
गुरु विद्या वर-वीर वे,
लगा नाव दें तीर ।।
॥ जयमाला ॥
नजर भर देख आ जरा तू ।
इनका मुस्काना है जादू ।।
आँखें इनकी नूरानी हैं ।
बातें दूजी जिनवाणी हैं ।।
इनका बतियाना है जादू ।
नजर भर देख आ जरा तू ।।
कहाँ कम आशीषी छाया ।
भागती दिखे देख माया ।।
इनका जिन वाना है जादू ।
नजर भर देख आ जरा तू ।।
इनका है आफताबी माथा ।
आफत हावी गौरव गाथा ।।
इनका समझाना है जादू ।
नजर भर देख आ जरा तू ।।
शास्त्र सामुद्रिक ही दूजे ।
गान-कीरति दश-दिश् गूँजे ।।
इनका याराना है जादू ।
नजर भर देख, आ जरा तू ।।
इनका मुस्काना है जादू ।
नजर भर देख आ जरा तू ।।
।। जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
गुरुवर दीन दयाल ।
हरी भरी हो ये धरा,
कण-कण हो खुशहाल ॥
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