परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 138
माँ श्री मन्ति ललना ।
गुल मल्लप्पा अँगना ।
गुरु विद्या कर करुणा ।
फिर-फिर न हो फिरना ।। स्थापना ।।
लाये जल-घट चरणा ।
लो भव हर, भव-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
हर लो जामन मरणा ।। जलं ।।
लाये मलयज चरणा ।
लो रज हर, रज-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
होओ शरण्य शरणा ।। चन्दनं ।।
लाये अक्षत चरणा ।
लो मद हर, मद-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
होओ तारण तरणा ।। अक्षतम् ।।
लाये फुल्वा चरणा ।
लो छल हर, छल-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
दो दिखा आत्म झरना ।। पुष्पं ।।
लाये व्यंजन चरणा ।
लो क्षुध् हर, क्षुध-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
भेंटो सिंह-आचरणा ।। नैवेद्यं ।।
लाये दीवा चरणा ।
लो तम हर, तम-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
कर लो निज-आभरणा ।। दीपं ।।
लाये सुगंध चरणा ।
लो कज हर, कज-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
मेंटो कर तर करना ।। धूपं ।।
लाये ऋतु फल चरणा ।
लो दुख हर, दुख-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
अब होवे ना गिरना ।। फलं ।।
लाये वसु द्रव चरणा ।
लो अघ हर, अघ-हरणा ।।
गुरु विद्या कर करुणा ।
भेंटो समाधि-मरणा ।। अर्घं ।।
==दोहा==
सीख ‘कटर’ जिनसे गया,
गैर बनाना काम ।
गुरु विद्या सुख-धाम वे,
दें मन अश्व विराम ॥
॥ जयमाला ॥
विद्या सागर गुरु का नाम ।
आ मन सुमरो सुबहो शाम ।
मुफ्त बाँटते हैं मुस्कान ।
भक्तों का रखते हैं ध्यान ॥
ध्याते, बनते बिगड़े काम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।
गो वत्सल सा वत्सल नेक ।
दुखी किसी को सकें न देख ॥
भाँत पवन सर ग्रीष्म घाम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।
फले बखूब खूब आशीष ।
बन सईस भी जाय रईस ॥
राम शबरि मीरा घन श्याम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।
मधुर रसीले नीके बोल ।
मिसरी दही सरीखे घोल ॥
सम्पूरण मनरथ निर्दाम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।
नजर अपर वरदानी छाँव ।
महर-शहर शिव छेपे नाव ॥
लगे समाधि हाथ मुकाम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।
आ मन सुमरो सुबह-शाम ।
विद्या सागर गुरु का नाम ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
निस्पृह नेह समेत ।
दश दिश् हो खुशहालियाँ,
हरे भरे हों खेत ॥
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