परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 137
जिन्हें निराकुलता प्यारी ।
जिनसे आकुलता हारी ।।
गुरु विद्या वे अविकारी ।
कर ले विरति निरतिचारी ।।स्थापना।।
लिये उदक प्रासुक आया ।
पाने तव छत्रच्छाया ।।
कर दो कुछ यूँ मुनिराया ।
दिखा पीठ भागे माया ।।जलं।।
लिये हाथ बावन चन्दन ।
विहँसाने कानन क्रन्दन ।।
ओ ! गुरुदेव ज्ञान नन्दन ।
छुड़ा बार इस दो बन्धन ।।चन्दनं।।
लाये भर अक्षत थाली ।
रात अमावस की काली ।।
लाली ओ ! सुबहो वाली ।
भर दो रँग डाली डाली ।।अक्षतम् ।।
आये पुष्प लिये न्यारे ।
हा ! मनमथ बाजी मारे ।।
त्रिभुवन ओ ! पालन हारे ।
खोवें पाप भाव सारे ।।पुष्पं ।।
मीठे ये व्यंजन घी के ।
कर्म प्रहार करे तीखे ।।
कलि हिमेश इक ओ ‘धी’ के ।
दो परिणाम बना नीके ।।नैवेद्यं।।
लिये दीप घृत अठ पहरी ।
चालें चले कर्म गहरी ।।
अपर भावि ! ओ ! शिव शहरी ।
त्राहि माम् अघ दोपहरी ।।दीपं।।
नूप-धूप घट मन भावन ।
लाये तुम चरणन पावन ।।
ओ ! समान पतझड़ सावन ।
मन चल पड़े न पथ रावन ।।धूपं।।
भर परात लाये फल के ।
हित होने तुमसे हलके ।।
अधिपति ओ ! तीरथ चल के ।
भर दो श्रुत गागर, झलके ।।फलं।।
अरघ लिये प्यारा न्यारा ।
एक शरण थारा द्वारा ।।
शान्ति दुग्ध धारा ऽऽधारा ।
हो नो दो ग्यारा कारा ।।अर्घं।।
==दोहा==
हंस जिन्हें लख बन सका,
नीर विवेकी क्षीर ।
गुरु विद्या भव-तीर वे,
नेह विहर लें चीर ॥
॥ जयमाला ॥
आपने अपना लिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।
अपना बना सपना दिया,
गुरुदेव शुक्रिया ॥
अजनबी था दया के,
तेरी न काबिल था ।
भँवर था, नहिं दूर तक,
दिख रहा साहिल था ॥
थाम तुमने हाथ जो,
साहिल थमा दिया ।
आपने अपना लिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।
अपना बना सपना दिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।।
बाँस था, मेरा जहाँ में,
था न कुछ भी मोल ॥
नाम को थी, ओढ़ बस,
रक्खी ये जीवन खोल ।
कर कृपा जो आपने,
बांसुरी बना दिया ॥
आपने अपना लिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।
अपना बना सपना दिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।।
कब छुपी है आपसे,
क्या कहूँ अपनी दास्ताँ ।
पद दलित हा ! माटी,
न रखता था कोई भी वास्ता ॥
बना तुमने घट जो,
सबके सर बिठा दिया ।
आपने अपना लिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।
अपना बना सपना दिया,
गुरुदेव शुक्रिया ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही विनय अनुनय यही,
दीप ज्ञान गुरु-वंश ।
स्वयं समाँ कर लीजिये,
सर अध्यातम-हंस ॥
Sharing is caring!