परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 135
श्रीमति माँ मल्लप्पा घर ।
थे आये बन विद्याधर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।। स्थापना।।
प्रासुक जल से भर गागर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर।। जलं ।।
रज मलय सदय भर गागर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर।। चन्दनं ।।
अक्षत के थाल सजाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।। अक्षतम् ।।
चुन पुष्प थाल भर लाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।।पुष्पं ।।
व्यंजन के थाल सजाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।। नैवेद्यं ।।
घृत दीपक लिये जगाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।।दीपं ।।
घट-धूप-नूप झट लाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।।धूपं ।।
ऋतु-फल दल थाल सजाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।। फलं ।।
आठों ही दरब सजाकर ।
आये दर शीश झुकाकर ।।
चरणों की धूल बनाकर ।
रख लो गुरु विद्या सागर ।।अर्घं।।
==दोहा==
जिनसे चूनर पा गई,
गैर ढ़ाकना लाज ।
गुरु विद्या महाराज वे,
जायें हृदय विराज ॥
॥ जयमाला ॥
।।महात्मा-महात्मा- महात्मा।।
बाल वृद्ध विनय जुत ।
अवर सदय हृदय बुत ।।
साथ आठ-आठ माँ ।
महात्मा महात्मा महात्मा ॥
थवन निरत तीर्थकर ।
तीर्थ चलित कीर्त-धर ।।
‘सींह-नृ’ नमो नमः ।
महात्मा महात्मा महात्मा ॥
अलोना भी सलोना ।
जल न आये बिलोना ।।
चाँद रात इक अमा ।
महात्मा महात्मा महात्मा ॥
काज दो भले बुरे ।
भला अगर भले करे ।।
ले बुरे की लें क्षमा ।
महात्मा महात्मा महात्मा ॥
नेह नहीं देह से ।
देह भी विदेह से ।।
भावी परमात्मा ।
महात्मा महात्मा महात्मा ॥
प्रीत तज अयोग्य दी ।
अबकि जीत योग्य भी ।।
करें सुराख आसमाँ ।
महात्मा महात्मा महात्मा ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
यही प्रार्थना आपसे,
गुरुवर दीन दयाल ।
ढ़ाढ़स तब देना बंधा,
आ धमके जब काल ।।
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