loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 134

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक – 134

शरण आया ।
यजन भाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।। स्थापना ।।

शरण आया ।
उदक लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।।जलं ।।

शरण आया ।
गन्ध लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।।चन्दनं ।।

शरण आया ।
अछत लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।।अक्षतम् ।।

शरण आया ।
सुमन लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।। पुष्पं ।।

शरण आया ।
अमृत लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।।नैवेद्यं ।।

शरण आया ।
दीप लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया।।दीपं ।।

शरण आया ।
धूप लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया।। धूपं ।।

शरण आया ।
भेल लाया ।।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।। फलं ।।

शरण आया ।
अर्घ्य लाया ।
सिन्धु विद्या ।
श्रमण राया ।।अर्घ्यं ।।

==दोहा==
मात पिता गुरु देवता,
गुरु ही तीरथ धाम ।
धन्य वहीं जीवन किया,
जिसने गुरु के नाम ॥

॥ जयमाला ॥

।।धन श्रमण – धन श्रमण- धन श्रमण।।

दे रहे पर पीर न ।
विष बुझे वच तीर न ।।
धन न पर करें ग्रहण ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

श्वान सी न अस्थि मुख ।
मुक्ति तरफ किस्ति रुख ।।
कहाँ संग संग्रहण ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

देख जुग करें गमन ।
हित-मित परिमित वचन ।।
लें गृह श्रावक अशन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

सँभल उठा-धर रहे ।
जाग अठ पहर रहे ।।
सजग विकृति निर्गमन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

भाँति इक कड़ा नरम ।
शीत भाँति इक गरम ।।
गंध उभय इक वरण ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

इक वरण वरण सभी ।
इक विषय करण सभी ।।
अभिजित यूँ अक्ष पन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

छिन तीर्थक थुति न बिन ।
वन्दना निरत ‘ऽनु-दिन’ ।।
द्वार विनय शिव भवन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

जाप नमोकार साथ ।
निरसन रज हाथ हाथ ।।
छल न मन न बाँकपन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

अजोग-जोग भी विसर ।
कर न देह की फिकर ॥
आत्म ‘सर’ करें न्हवन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

मुण्ड-मुण्ड मुण्ड दश ।
वस्त्र दश दिशाएँ बस ।।
आप आप में मगन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।

गंग जल ‘जी’ क्या न्हवन ।
मुँ: कमल क्या दन्तवन ।।
‘जवाँ’ धर-ज्ञाँ वृद्ध पन ।
धन श्रमण, धन श्रमण, धन श्रमण ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

==दोहा==
गुरु सम्मेद शिखर मिरे,
पुर चंपा गिरनार ।
पुर-पावा गुरु जी मिरे,
दिवि शिव के भी द्वार।।

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point