परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 120
सुनि सुनि मीरा अन्तर धुनि ।
सुनि सुनि शबरी मन्तर ध्वनि ।।
गुरु ! हम भी रहे पुकार तुम्हें ।
भव-जल से दो कर पार हमें ।।स्थापना।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
मुख तलक भरे, शुचि उदक घड़े ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
दो नैन उठा दो, नेह मढ़े ।। जलं ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
मुख तलक भरे, रज मलय घड़े ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
दो होंठ दिखा, शिल-सिद्ध मुडे ।। चन्दनं।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
सित अछत भरे, थाल सुनहरे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
दो हाथ उठा, आशीष भरे ।। अक्षतम् ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
गुल प्रफुल भरे, थाल सुनहरे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
कह दो अपना, गुरुदेव मिरे ।।पुष्पं ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
पकवान भरे, थाल सुनहरे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
लेने दो लख भर नैन अरे ।। नैवेद्यं ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
घृत दीप भरे, थाल सुनहरे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
लेने दो छू ये चरण तिरे ।।दीपं ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
दशगन्ध भरे, थाल सुनहारे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
दो बोल-बोल दो मिसरि घुरे ।।धूपं ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
फल सकल भरे, थाल सुनहरे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
लो खैर-खबर गुरुदेव मिरे ।। फलं ।।
लेके दर खड़े, सुन्दर बड़े ।
अर अरघ भरे, थाल सुनहरे ।।
अभिलाष यही, इक बार सही ।
आकर लो घर आहार मिरे ।। अर्घं।।
==दोहा==
ब्राह्मी सुन्दरी नाम का,
आश्रम जिनकी दैन ।
कृति चेतन गुरु ज्ञान वे,
नमन तिन्हें दिन-रैन ।।
॥ जयमाला ॥
।। नमस्कार गुरु पञ्च हमारा ।।
अब बँधने वाली शिव पगड़ी ।
जाने, जानें दुनिया सगरी ।।
अरिहन्तों का हमें सहारा ।
नमस्कार गुरु पञ्च हमारा ।।
स्वप्न कहाँ अब स्वप्न सरीखा ।
लगा माथ अधिपति शिव टीका ।।
शरण हमें सिद्धों का द्वारा ।
नमस्कार गुरु पञ्च हमारा ।।
लिये धर्म ध्वज सबसे आगे ।
संघ पतंग हाथ इन धागे ।।
थवन सूरि भव जलधि किनारा ।
नमस्कार गुरु पञ्च हमारा।।
स्वार्थ विसर श्रुत सुधा पिलाते ।
आते उन्हें बिठाते जाते ।।
त्रिजग भक्त उवझाय तिहारा ।
नमस्कार गुरु पञ्च हमारा ।।
फिरके में आते कब मन के ।
फिर नवकार रहे कर ‘मनके’ ।।
‘जयतु श्रमण’ जप किन्हें न प्यारा,
नमस्कार गुरु पञ्च हमारा ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
और नहीं कुछ चाहिये,
सिर्फ यही अरदास ।
हो गोदी में आपकी,
लें अखीर जब श्वास ।।
Sharing is caring!