परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 118
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों यहाँ चला आता ॥
गुरुवर तुमसे मेरा ।
है जन्मों का नाता ।।स्थापना।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर भर जल लाता ॥
नहिं टूट रहा गुरुवर ।
यम, जनम जरा ताँता ।। जलं ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर मलयज लाता ॥
जब देखो तब गुरुवर ।
क्रोधानल धमकाता ॥ चन्दनं।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर अक्षत लाता॥
गुरु देव लगा दुखने ।
पा पद विक्षत माथा ।। अक्षतम् ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर प्रसून लाता ॥
जब-तब आँखें गुरुवर ।
मन्मथ ये दिखलाता ।। पुष्पं ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर व्यञ्जन लाता ॥
कर रखा नाक में दम ।
इस भूख ने विधाता ।।नैवेद्यं ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर दीवा लाता ॥
देखा जब, मोह मुझे ।
तब दिखा बरगलाता ।।दीपं ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर सुगंध लाता ॥
पल श्वास न, दे लेने ।
रज पाप ये असाता ।। धूपं ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर ऋतु-फल लाता॥
दिन रात भाग कर भी ।
न मुकाम हाथ आता ।। फलं ।।
गर पूछो, बतलाता ।
क्यों कर वसु द्रव लाता ॥
दर घाट पिया-पानी ।
अब पद अनर्घ भाता ।। अर्घं।।
==दोहा==
भारत प्रतिभा रत बने,
जिनका सतत प्रयास ।
शाने-हिन्दुस्तान वे,
करें हृदय आ वास ॥
॥ जयमाला ॥
॥ पथ गुरुदेव मुकति किस जैसा॥
नामो निशाँ न पैर निशाँ के ।
चलना थामे हाथ दिशा के ॥
वायुयान पथ कुछ-कुछ वैसा ।
पथ गुरुदेव-मुकति किस जैसा ॥
झूठ मानिये पैर गुलाबी ।
पन निसंग हल्का इक चाबी॥
खड्ग-धार पथ कुछ-कुछ वैसा ।
पथ गुरुदेव-मुकति किस जैसा ॥
कहे मुकाम न, रुक रुक बह ‘ना’ ।
तब-तक फाँद दिवारें बहना ॥
यथा सरित् पथ कुछ-कुछ वैसा ।
पथ गुरुदेव-मुकति किस जैसा ॥
फतह चरण नाजुक भी रखते ।
हाथ थाम पर चल नहिं सकते॥
पगडण्डी पथ कुछ-कुछ वैसा ।
पथ गुरुदेव-मुकति किस जैसा ॥
चलना सँभल दृष्टि रख नासा ।
जरा ‘कि चूके खत्म तमाशा ॥
नट-रसरी पथ कुछ-कुछ वैसा ।
पथ गुरुदेव मुकति किस जैसा ॥
।।जयमाला पूर्णार्घ्य ।।
==दोहा==
अद्वितीय अद्भुत रही,
गुरु आशीषी-छाँव ।
टिका पा रहीं मुश्किलें,
पल भर भी कब पाँव ॥
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