परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 116
आओ कर करुणा ।
संपूरो-सपना ।।
छोटे-बाबा अर ।
जय विद्या-सागर ।।स्थापना ।।
भर नीर चढ़ाता ।
दो धीर विधाता ।।
अर गोशाला-धर ।
जय विद्या-सागर।।जलं ।।
रस-गन्ध चढ़ाता ।
लो विहर असाता ।।
अर हतकरघा-धर ।
जय विद्या-सागर ।। चन्दनं ।।
पद-अछत चढ़ाता ।
हो श्रुत से नाता ।।
संथली-प्रतिभा-धर ।
जय विद्या-सागर ।। अक्षतम् ।।
चुन पुष्प चढ़ाता ।
बिखरे दुख ताँता ।।
अनुशासन-दा अर ।
जय विद्या-सागर।। पुष्पं ।।
चरु दिव्य चढ़ाता ।
हो उन्नत माथा ।।
प्रतिभा-प्रतिछा-धर ।
जय विद्या-सागर।।नैवेद्यं ।।
घृत दीप चढ़ाता ।
पथ बनूँ न काँटा ।।
भाग्योदय-दा अर ।
जय विद्या-सागर।।दीपं ।।
शुचि धूप चढ़ाता ।
लो हर दुख त्राता ।।
सिद्धोदय-दा अर ।
जय विद्या-सागर ।।धूपं ।।
फल सरस चढ़ाता ।
दो शिव-फल दाता ।।
सर्वोदय-दा अर ।
जय विद्या-सागर।।फलं ।।
रच अरघ चढ़ाता ।
सुख आये गाता ।।
चल तीरथ-दा अर ।
जय विद्यासागर ।।अर्घं।।
==दोहा==
मातरि भाषा के लिये,
दिला रहे सम्मान ।
भक्तों के भगवान् वे,
शाने-हिन्दुस्तान ।।
॥ जयमाला ॥
।।गुरु अध्यात्म सरोवर हंसा।।
माटी मटकी कहने वाले |
ताती सरदी सहने वाले ।।
दहने वाले आत्म प्रशंसा ।
गुरु अध्यात्म सरोवर हंसा ।।
पथ पथरीले चलने वाले ।
तट तरफी ले चलने वाले ।।
करने वाले पूरण मंशा ।
गुरु अध्यात्म सरोवर हंसा ।।
नाटक नहीं अटकने वाले |
भाग्य सितारे टक ने वाले ।।
लखने वाले बाँसुरि वंशा |
गुरु अध्यात्म सरोवर हंसा ।।
काँधे बीज उठाने वाले |
कादे बिच मुस्काने वाले ।।
विहँसाने वाले विध्वंसा ।
गुरु अध्यात्म सरोवर हंसा ।
नौ-भौ-जलधि तिराने वाले |
गाने आत्म तराने वाले ।।
विनशाने वाले मति कंसा |
गुरु अध्यात्म सरोवर हंसा ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
गुरु से माँगें तब मिले,
ऐसी ही कब बात ।
गूँगे भी वो देखिये,
जाते ले कुछ हाथ ।।
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