परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 110
विद्या गुरु राया ।
हित पूजन आया ।।
एक नजर उठा दो ।
रज-चरण भिंटा दो ।। स्थापना ।।
जल निर्मल लाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ ! रम्यक उपवन ।
हो सम्यक् दर्शन ।। जलं ।।
चंदन घिस लाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
भो ! डर अवशोषी ।
दो कर संतोषी ।। चन्दनं।।
सित अक्षत लाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ ! मुक्ति सारथी ।
हो प्राप्ति पार की ।। अक्षतम् ।।
चुन प्रसून लाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ ! जेय वासना ।
हो हेय वासना ।। पुष्पं ।।
नैवेद्य सजाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ ! खुदा हमारे ।
हो छुधा किनारे ।। नैवेद्यं ।।
घृत दीपक लाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ ! नूर घनेरे ।
हों दूर अँधेरे ।। दीपं ।।
घट सुगंध लाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ ! परम आतमा ।
हो करम खातमा ।। धूपं ।।
फल थाल सजाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ पग यातरि जी ।
दो दृग् भीतरि ‘भी’ ।। फलं ।।
अर अरघ बनाया ।
आ चरण चढ़ाया ।।
ओ तारण हारे ।
दो लगा किनारे ।। अर्घं ।।
==दोहा==
अचल तीर्थ चल नेक के,
जो इक रचनाकार ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
नमन तिन्हें शत बार ।।
॥ जयमाला ॥
।। गा महिमा गुरु किसने पाई ।।
घर से था उपनय में आया ।
गोद स्वयं को गुरु तब पाया ।।
मग काँटों की बिछी बिछाई ।
गा महिमा गुरु किसने पाई ।।
त्रिभुवन ख्यात सिंधु जल खारा ।
मधु गुरु-देव सिंधु जल धारा ।।
चखा बिंदु इक तृषा बिलाई ।
गा महिमा गुरु किसने पाई ।।
इन्दु देख बस सिन्धु उमड़ता ।
मुख गुरु-देव-इन्दु ‘हर-जड़ता’ ।।
लख इक झलक मुलक उमगाई ।
गा महिमा गुरु किसने पाई ।।
फल प्रसून तरु दे कुछ छाया ।
नीचे गुरु सुर-तरु जो आया ।।
पाया दिव-शिव-सुख ठकुराई ।
गा महिमा गुरु किसने पाई।।
गगन स्लेट ‘कर’ अखर सितारे ।
गाथा गुरु ‘गुरु-अमर’ उतारे ।।
पाये पार कहाँ, सिथलाई ।
गा महिमा गुरु किसने पाई ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
फिर प्रवेश माँ देखती,
पहले चन्दन माथ ।
आप-पास इतने खड़ा,
कृपा उसी की नाथ ।।१।।
मुझे नहीं कुछ चाहिये,
गर देने की बात ।
करुणा कर दे दीजिये,
उसको आशीर्वाद ।।२।।
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