परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 103
तेरी सम रस सानी ।
जैसी शीतल वाणी ।।
ना त्रिभुवन दीख पड़े ।
सो जोड़े हाथ खड़े ।।स्थापना।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया, जल भर लाया ।।
होऊँ शिव अधिशासी ।
हो चली खूब हाँसी ।।जलं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया मलयज लाया ।।
कुछ कीजो इस बारी ।
जीतूँ हारी पारी।।चन्दनं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया अक्षत लाया ।।
इक मनोकामना ये ।
पद अछत हाथ आये।।अक्षतं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया प्रसून लाया ।।
कृपया अन्तर्-यामी ।
कर लीजो निष्कामी।।पुष्पं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया चरु-अरु लाया ।।
ओ ! देवता हमारे ।
कर दो क्षुधा किनारे ।।नैवेद्यं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया दीवा लाया ।।
हा ! मदिर मोह हाला ।
भर दो हृदय उजाला ।।दीप॑।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया सुगन्ध लाया ।।
ध्वज कर्म रहा फहरा ।
आ हटक दो उसे जरा ।।धूपं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया ऋतु फल लाया ।।
हो गया बहुत अब छल ।
पदवी पाऊँ अविचल ।।फलं।।
ओ ! श्रमण संघ राया ।
आया सब कुछ लाया।।
कृपया अरजी सुन लो ।
निज शिष्यों में चुन लो ।।॥अर्घं।।
“दोहा”
सम रस ! श्रमणाधिप अहो !
शीतल शाश्वत धाम ।
शिष्य ज्ञान गुरु वे तिन्हें,
सविनय नम्र प्रणाम ॥
॥ जयमाला ॥
एक तुम्हीं सम-रस रसिया ।
हृदय नहीं किस-किस वसिया ।।
तर अमीर का घर बढ़िया ।
तर गरीब की झोपड़िया ।।
सीख तुम्हीं से मेघ लिया ।
एक तुम्हीं सम-रस रसिया ।।
उजाला भी आ चमक गया ।
गन्दला भी पा चमक गया ।।
सीख तुम्हीं ‘निर्मली’ लिया ।
एक तुम्हीं सम-रस रसिया |।
बुझ ऽभिराम की प्यास गई ।
बुझ ‘कि श्याम की प्यास गई ।।
सीख तुम्हीं से सरित् लिया ।
एक तुम्हीं सम रस रसिया ।।
उपल बाल दे, पाया फल ।
‘निकट-काल’ ले आया फल ।।
सीख तुम्हीं से विटप लिया ।
एक तुम्हीं सम रस रसिया ।।
नगर वधू घर गत अन्धर ।
नगर प्रभू घर हत अन्धर ।।
सीख तुम्हीं से दीप लिया ।
एक तुम्हीं सम रस रसिया ।|
एक तुम्हीं सम-रस रसिया ।
हृदय नहीं किस-किस वसिया ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*दोहा*
कोकिल से मिश्री घुले,
बोल आप अनमोल ।
कौन झुलायेगा नहीं,
बिठा नैन निज-दोल ।।
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