- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 1006
आ मिल कर करते पूजा
गुरु भगवन् जैसा दूजा
नहीं कोई
जहां दोई
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।स्थापना।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
रतनारी
जल झारी
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।जलं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
मनहारी
गंधा ई
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।चन्दनं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
भा न्यारी
धाँ शाली
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।अक्षतं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
सुर क्यारी
फुलबारी
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।पुष्पं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
गैय्या घी
चरु शाही
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।नैवेद्यं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
मण थाली
दीपाली
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।दीपं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
नंदा ई
गंधा ‘री
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।धूपं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
गुणकारी
फल डाली
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।फलं।।
ला मनुआ
‘रे आ मनुआ
छव न्यारी
द्रव सारी
आ मिल कर करते पूजा
मैनें जा जा कर खोजा
जहां दोई
नहीं कोई
गुरु भगवन् जैसा दूजा
आ मिल कर करते पूजा ।।अर्घ्यं।।
=कीर्तन=
रोशनी गुरुदेव
जिन्दगी गुरुदेव
हर खुशी गुरुदेव
छाँव घनी गुरुदेव
जयतु जय जय गुरुदेव
जयतु जय जय गुरुदेव
जयमाला
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
रोशनी
लाये छाँव घनी
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
अब मुझे हारने का डर नहीं
हथियार डाल चुका हूँ मैं
मृत्यु यम से
मिथ्या-तम से
अब मुझे हारने का डर नहीं
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
रोशनी
लाये छाँव घनी
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
हृदय में मेरे रहने लगी है एक ठण्डक
भीतरी डूब,
स्वयं चला चला के खूब
देती रहती है, आ मेरे द्वार पे दस्तक
कर्म सितम से
हवा पश्चिम से
मृत्यु यम से
मिथ्या-तम से
अब मुझे हारने का डर नहीं
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
रोशनी
लाये छाँव घनी
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
मन जो मन-भर का था हो चुका है हल्का
अब तलक नज़रों से ओझल था
वह एक अपना, आ करके मुझे
देर तलक झलका
हृदय में मेरे रहने लगी है एक ठण्डक
भीतरी डूब,
स्वयं चला चला के खूब
देती रहती है, आ मेरे द्वार पे दस्तक
कर्म सितम से
हवा पश्चिम से
मृत्यु यम से
मिथ्या-तम से
अब मुझे हारने का डर नहीं
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
रोशनी
लाये छाँव घनी
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढ़ेर सुखिंयाँ लाये
‘जि गुरु जी
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
सिर जिसके गुरु हाथ
दुनिया उसके साथ
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