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कहानी

कहानी – तिलिस्मी आईना 

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

                                                           “तिलिस्मी आईना”

एक दिन की बात है, ‘छप्पर फाँड़ के कुछ मिलता है’ यह चरितार्थ हुआ । एक व्यक्ति की गोद में एक अंगूठी आ गिरी, जिसमें एक कागज में कुछ लिखा सा, कुछ बँधा हुआ है । व्यक्ति ने कागज खोल कर पढ़ना शुरू किया । जिसमें लिखा था । इस हीरे की अंगूठी के बीचों बीच एक तिलिस्मी आईना लगा हुआ है । जिसे किसी व्यक्ति के सामने ले जाते हैं, तो व्यक्ति का बाहरी चेहरा न दिख के, भीतर किस तरह के भाव चल रहे हैं । उस मानव या दानव का चेहरा दिखाई देता है । वह व्यक्ति अंगूठी का जादू देखने के लिये तुरन्त खड़ा हुआ । और दरवाजा खोलकर रास्ते से निकलते मोबाइल से बात करते हुये, एक व्यक्ति पर आजमा के देखता है, और देख के दंग रह जाता है । उसमें उस व्यक्ति जैसा कुछ नहीं दिखा, दिखा एक रंग बदलू गिरगिट का चेहरा | फिर उसने पास खड़े एक दुकानदार का चेहरा देखा, तो उसे आईने में दिखाई दिया एक बगुले का चेहरा ।
हॉस्पिटल से निकलती एक महिला को देखा तो आईने में महिला की जगह एक नागिन का चेहरा दिखा । दो जुड़वा भाईंयों को देखा, तो आईने में दो भूूस-भूषण दिखाई दिये । शाम तक देखता रहा वह अंगूठी में, एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला जिसका अक्स मानव का हो, देव तो दूर की बात है ।
वैसे अभी तक खेल चल रहा था, किन्तु अब बारी खुद को देखने की थी । परन्तु अंगूठी अपने चेहरे के सामने लाख कोशिशों के बाद भी लेकर नहीं ला पाया वह नौजवाँ । लेकिन आज का दिन वो दिन था, जब उस व्यक्ति को चलते-चलते रास्ते पर यू-टर्न मिल गया था । ‘यूँ-टर्न’ गलत रास्ते से सही रास्ते पर लाने के लिये होते हैं, वे कहते हैं… जितना गलत रास्ता चले आये, कोई बात नहीं, मुझ से निकल चलो रास्ता सही कर लो…
बस फिर क्या, एक एक कदम फूँक-फूँक कर रखने लगा वो व्यक्ति । और ऐसा मंज गया, ऐसा मंज गया, ‘कि एक दूसरा व्यक्ति जिसकी गोद में भी छप्पर फाँड़ के अंगूठी गिरी थी । वो मजा लेने घर से बाहर निकला । और सारी दोगली दुनिया से रूबरू होके शाम-शाम को इस व्यक्ति के चेहरे के सामने लाकर आईना रख दिया ।
और जैसे ही आईने में देखता है, तो अँगूठी के आईने में, देख कर दंग रह जाता है, यह दूसरा व्यक्ति । और तुरंत पहले व्यक्ति के पैर छूने लगता है । बीच में ही रोककर पहले व्यक्ति ने कहा, भाई क्या कर रहे हो । तब दूसरा व्यक्ति बोला, मैं सुबह से इस आईने में लोगों के चेहरे देख रहा हूँ । लेकिन कोई आदमी का चेहरा नहीं दिखाई दिया । तुम पहले व्यक्ति हो और शायद आखरी भी जिसका हूबहू चेहरा आईने में झलक रहा है । मुझे भी रास्ता दिखा दो मित्र ।
पहला व्यक्ति बोला मित्र आसान… बड़ा ।
आशा…न…बढा ।
आ… शान… बढा ।

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