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आरती

आरती-महावीर स्वामी

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

महावीर स्वामी ‘आरती’

अन्तर्यामी की ।
शिवपुर गामी की ।।
मैं तो आरती उतारुँ रे ।
महावीर स्वामी की ।

जय जय महावीर स्वामी, जय जय जय ।
आरतिया करती कर्मों का क्षय ।
आरतिया हरती मृत्यु का भय ।।
जय जय महावीर स्वामी, जय जय जय ।।

आरतिया पहली गर्भ समय की ।
बरषा रतन ऐसी, कहीं न देखी ।।
महिमा सुपन ऐसी, कहीं न देखी ।।
मैं तो आरती उतारुँ रे ।
महावीर स्वामी की ।।

आरतिया दूजी जनम समय की ।
घट यात्रा ऐसी, कहीं न देखी ।।
छवि माथे ऐसी, कहीं न देखी ।।
मैं तो आरती उतारुँ रे ।
महावीर स्वामी की ।।

आरतिया तीजी त्याग समय की ।
दीक्षा नगन ऐसी, कहीं न देखी ।।
रक्षा रतन ऐसी, कहीं न देखी ।।
मैं तो आरती उतारुँ रे ।
महावीर स्वामी की ।।

आरतिया चौथी ज्ञान समय की ।
सम शरणा ऐसी, कहीं न देखी ।।
दृग् करुणा ऐसी, कहीं न देखी ।।
मैं तो आरती उतारुँ रे ।
महावीर स्वामी की ।।

आरतिया अर निर्वाण समय की ।
ध्याना-गिनी ऐसी, कहीं न देखी ।।
अर्धां-गिनी ऐसी, कहीं न देखी ।।
मैं तो आरती उतारुँ रे ।
महावीर स्वामी की ।।

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