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आरती

आरती-शान्ति, कुन्थ, अर

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

शान्ति, कुन्थ, अर
आरती

निहारो मूरतिया
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

चाँदी की थरिया
ले सोने का दिया
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

रत्न अपूर्व गगन से बरसे ।
स्वप्न देख महतारी हरषे ।।
‘रे जाने कब बीत चली रतिया ।
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

शच इक भव अवतार कहाई ।
न्हवन मेर सौधर्म रचाई ।।
थमा बाल माँ ताण्डव नृत्य किया ।
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

राजपाट तज, केश उखाड़े ।
हुए दिगम्बर, वस्त्र उतारे ।।
और टिका ली नासा पे अँखिया ।
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

सभा सम शरण नामनुरूपा ।
हिरण वहीं सिंह, अहि-मण्डूका ।।
जात वैर ने रस्ता नाप लिया ।
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

ध्यानानल सित कर्म जला के ।
लगा समय इक शिवपुर आके ।।
हो चाले शिव राधा सांवरिया ।।
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

निहारो मूरतिया
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

चाँदी की थरिया
ले सोने का दिया
शान्ति, कुन्थ, अर स्वामी की
उतारो आरतिया

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