loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

आरती

आरती-अजितनाथ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

अजितनाथ
आरती

जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।
करे आरती कर्म सभी क्षय ।
हरे आरती सप्त सभी भय ॥

आरती प्रथम गर्भ कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
दिव्य रतन बरसा अम्बर से ।
सपने देख देख माँ हरसे ॥
कृत भव-पूरब पुण्य उदय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।

आरती दूज जन्म कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
मेर सुर्ख़िंयों में है छाया ।
सार्थ नाम ‘अख सहस’ बनाया ।
कब छक पाया रख दृग द्वय |
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।

आरती तृतिय त्याग कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
हाथ उखाड़ी लट घुँघराली ।
पट उतार जिन दीक्षा धारी ॥
‘सहज-निराकुल’ सदय हृदय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।

आरती तुरिय ज्ञान कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
सभा नाम सार्थक सम शरणा ।।
वैर विडार बैठ सिंह हिरणा ।
सुने दिव्य-धुन साथ विनय ॥
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।

आरती और मोक्ष कल्याणा |
उतर स्वर्ग का भू पर आना ॥
ले सित ध्यान खड्ग इस बारा ।
घात अघात कर्म परिवारा ॥
शिव पहुँचे बस लगा समय ।
जय जिन अजित, अजित जिन जय-जय ।

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point